श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता की क्यों दी जाती हैं मिसालें..

 
श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता की क्यों दी जाती हैं मिसालें..

श्री कृष्ण और सुदामा की कहानी हम सब बचपन से सुनते आए है. प्राचीन समय से ही भारतीय परंपरा के अनुसार मित्रता का महत्व हमेशा से रहा है. हम सबके जीवन में माता-पिता और गुरु के अलावा मित्रता का अपना एक अलग ही स्थान होता है. जब कभी भी मित्रता की बात होती है तो ज्यादातर लोग कृष्ण सुदामा की दोस्ती की मिसाल देते हैं. कृष्ण सुदामा की दोस्ती विश्व भर में विख्यात है. क्योंकि भगवान श्री कृष्ण नें एक राजा होते हुए भी मित्रता का धर्म निभाया और गरीब सुदामा को अपने बराबर का स्थान दिया. आइए जानते हैं कृष्ण सुदामा की दोस्ती को इतनी शोहरत क्यों मिली.

कृष्ण और सुदामा

सुदामा कृष्ण के भक्त और परम मित्र थे. सुदामा समस्त वेद पुराणों के ज्ञाता व विद्वान ब्राह्मण थे. उन्होंने एक साथ शिक्षा प्रदान की थी. उनकी मित्रता ऋषि संदीपनी के गुरुकुल में हुई थी. सुदामा एक निर्धन ब्राह्मण थे. उन्होंने अपना जीवन ब्राह्मण रीति के अनुसार बिताया. और जितना कुछ उनके पास था. वह उतने में ही खुश रहते और हरि भजन करते रहते थे. शिक्षा पूरी होने के बाद सुदामा आसमावतीपुर (पोरबंदर) में रहने लगे और भगवान श्री कृष्ण द्वारिका के राजा बन गए.

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मित्रता की कहानी

भगवान श्री कृष्ण के सहपाठी सुदामा एक निर्धन ब्राह्मण होने के कारण बहुत दुखी रहते थे. उन्हें अपनी पत्नी व बच्चों का पालन पोषण करना भी मुश्किल था. इसी प्रकार कुछ दिन तक यही हाल चलता रहा. फिर एक दिन सुदामा की पत्नी ने कहा आप अपने मित्र कृष्ण के बारे में बताते थे. वह द्वारिका के राजा हैं. आप वहां क्यों नहीं चले जाते. सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर सहायता के लिए द्वारकाधीश श्री कृष्ण के पास जाते हैं. उन्हें रास्ते में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. लोग उनकी गरीबी पर हंसते हैं.

जब भगवान श्री कृष्ण को पता चलता है कि सुदामा आ रहे हैं तो वह नंगे पैर दौड़े-दौड़े उनके पास पहुंच जाते हैं और अपने महल में ले आते हैं. परंतु महल में पहुंचने के बाद भी सुदामा संकोचवश श्री कृष्ण को कुछ नहीं बताते हैं. लेकिन भगवान श्रीकृष्ण तो अंतर्यामी है. उन्हें सारी परेशानियां अपने आप ही पता चल जाती हैं. सुदामा कृष्ण से मिलकर खाली हाथ ही अपने घर लौट आते हैं. जब वह अपने नगर पहुंचते हैं तो देखते हैं कि टूटी फूटी झोपड़ी एक महल के रूप में परिवर्तित हो गई है. और उनकी पत्नी सुशीला व उनके बच्चे से सुशोभित हो रहे हैं. इसे देख सुदामा जय श्री कृष्ण रटने लगते हैं. और आसमावतीपुर का नाम सुदामानगरी हो जाता है. इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा की निर्धनता व सभी दुखों को नष्ट कर दिया. आज भी उनकी दोस्ती की मिसाल है.

इसीलिए हमारे प्रिय दोस्तों हमें भी उनकी दोस्ती से सीख लेनी चाहिए और अपने दोस्तों को कभी भी किसी भी परिस्थिति में अकेला नहीं छोड़ना चाहिए.

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