मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम को 14 वर्षो का ही वनवास क्यों हुआ?
मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम का जन्म सूर्यवंशी कुल में राजा दशरथ के यहां हुआ था. काफ़ी समय के बाद दशरथ के यहां पुत्र प्राप्ति हुई थी. इसके लिए उन्होंने बहुत मन्नतें भी मांगी थी. किन्तु एक समय वह आया जब महाराज दशरथ को अपने सबसे प्रिय पुत्र राम को 14 वर्ष का वनवास देना पड़ा. महाराजा दशरथ की तीन रानियां थीं, कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी. जिनमें से कैकेयी बहुत वीर थीं. एक बार युद्ध के दौरान महाराज दशरथ के रथ के पहिये की धुरी निकल गयी थी. तो महारानी कैकेयी ने अपनी उंगली लगा ली थी वहां पर जिससे अंत में राजा की विजय हुई. और राजा ने कैकेयी को वरदान मांगने को कहा तो कैकेयी ने कह दिया कि समय आने पर मांग लूंगी.
जब कई वर्षों बाद दशरथ के चारों पुत्र बड़े हुए. और उनके ज्येष्ठ पुत्र राम के राज्याभिषेक की तैयारी की जा रही थी. तभी महारानी कैकेयी ने महाराज दशरथ से कहा कि आपको याद है आपने मुझे वरदान मांगने को कहा था. उन्होंने कहा हां. तो कैकेयी बोली कि यही उचित समय है आप मुझे वरदान दीजिए. दशरथ ने कहा मांगो तो कैकेयी ने राम के लिए 14 वर्ष का वनवास और भरत के लिए राज्य मांग लिया. इसके बाद राम को वनवास हो गया किन्तु भरत ने राज्य स्वीकार नहीं किया और वह राजगद्दी पर राम की चरणपादुका रखकर खुद तपस्या करने लगे. इस दुःख को महाराज दशरथ बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्होंने प्राण त्याग दिए. कैकेयी की छवि भी इसी कारण पूरे समाज में खराब हो गयी.
मर्यादापुरुषोत्तम को 14 वर्ष का ही वनवास क्यों
कईं लोग सोचते होंगे कि 14 वर्ष का वनवास क्यों मांगा 12, 13 या 15 वर्ष का क्यों नहीं. तो आप लोगों को बता दें कि राम का जन्म त्रेतायुग में हुआ था. और त्रेतायुग का एक प्रशासनिक नियम था कि यदि कोई व्यक्ति अपने राज्य से 14 वर्ष तक दूर रहता है तो वह फिर कभी भी राजा नहीं बन पाएगा. इसीलिए महारानी कैकेयी ने बहुत सोच-समझकर 14 वर्ष का ही वनवास मांगा था. ताकि राम कभी भी राजा ना बन सके. यह सब उन्होंने अपने पुत्र भरत को राजा बनाने के लिए किया किन्तु भरत ने राज्य स्वीकार नहीं किया. और अपनी माता कैकेयी को बहुत बुरा भला कहा.
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