गणगौर पर सुहागिन महिलाएं क्यों रखती हैं व्रत?
गणगौर व्रत इस वर्ष 15 अप्रैल को है. सनातन धर्म में गणगौर का बहुत महत्व है. यह पंचांग के अनुसार, चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाते है. गणगौर पूजा सुहागनों का त्यौहार है. इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु के लिए गणगौर का व्रत करती है.
गणगौर व्रत का महत्व:-
यह व्रत खासकर सुहागने अपनी पति के लिए करती है. पति की लंबी आयु की कामना के लिए गणगौर माता यानी माता गौरा की विधि-विधान से पूजा की जाती हैं. यह खासकर राजस्थान और मध्यप्रदेश में मनाया जाता है. इस दिन माँ गौरी को प्रसन्न कर कुँवारी लड़कियां मन चाहा वर माँगती है. यह होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक यानी 17 दिनों तक चलने वाला त्योहार है.
गणगौर तीज शुभ मुहूर्त 2021-
29 मार्च 2021 सोमवार से गौरी पूजा यानी गणगौर तीज का शुभ मुहूर्त प्रारम्भ हुआ. जो कि 15 अप्रैल 2021 दिन गुरुवार तक रहेगा. 14 अप्रैल दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि आरंभ होगी. इसकी पूजा का मुहूर्त 15 अप्रैल को सुबह 05 बजकर 17 मिनट से 06 बजकर 52 मिनट तक रहेगा.
विधि विधान :
गणगौर तीज चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक चलता है. यह 17 दिवसीय त्यौहार होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन माँ पार्वती की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि इस दिन माँ पार्वती अपने पीहर आती हैं. इसके आठ दिनों के बाद भगवान शिव माता को लेने उनके पीहर जाते है. फिर चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है. इस दिन सुहागन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं माता पार्वती और भगवान शिव की अराधना करती है. इन 17 दिनों तक पूजा करने वाली स्त्रियां माता पार्वती की तरह ही जटिल अराधना करती हैं. रोज सुबह उठ कर दूब और फूल चुन कर लाती हैं. उन दूबों से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को लगाती हैं. फिर चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं. फिर अगले दिन चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को शाम के समय उनका विसर्जन कर देती हैं. गणगौरों का पूजा स्थल पीहर और विसर्जन स्थल ससुराल होता है।
सभी विवाहित महिलाओं को गणगौर का उपवास अवश्य रखना चाहिए. इससे आपके पति को दीर्घायु प्राप्त होती है.
यह भी पढ़ें:-
शीतला अष्टमी, सप्तमी व षष्ठी विधि एवं महत्व