ज्योतिष शास्त्र में रत्न धारण करने को क्यों कहा जाता है?
ज्योतिष शास्त्र में रत्नों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. रत्न का मतलब कुछ विशिष्ट छोटे चमकीले बहुमूल्य पदार्थ, जिनका उपयोग आभूषणों आदि में जड़ने के लिए होता है. हमारे यहां रत्न धारण करना बहुत पुण्यदायक माना जाता है. रत्न राशि के अनुसार और ज्योतिष की सलाह से पहने जाते हैं. रत्नों से भस्म बनाई जाती है. अगर आप रत्नों के पौराणिक इतिहास को जानना चाहते हैं, तो इसका इतिहास अग्नि पुराण में वर्णित है.
उसमें बताया गया है कि जब राक्षस वृत्रासुर और देवताओं के मध्य युद्ध छिड़ गया था. तभी देवताओं ने दुख व्यक्त करते हुए विष्णु भगवान से अनुरोध किया. भगवान विष्णु की सलाह मानकर इंद्रदेव ने वज्र का निर्माण करने के लिए महर्षि दधीचि से हड्डियों का दान मांगा. वज्र का निर्माण होने पर देवताओं ने राक्षस का वध कर दिया. कहा जाता है कि वज्र निर्माण के दौरान महर्षि दधीचि की कुछ हड्डियां पृथ्वी पर गिर गई. उन्हीं से इन रत्नों की उत्पत्ति हुई है. यह भी कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के समय अमृत का निर्माण हुआ, तो राक्षसों और देवताओं के बीच लड़ाई झगड़ा करते समय अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर जा गिरी. इन्ही बूंदों के द्वारा पृथ्वी पर रत्नों की अनेक खाने बन गई.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रत्न का अर्थ
रत्न प्रकृति प्रदत होते हैं. यह बहुत प्रभावशाली और आकर्षित होते हैं. रत्नों में अनेक खास गुण पाए जाते हैं, इसी वजह से इनका उपयोग अनेक क्षेत्रों में किया जाता है- जैसे आभूषण के निर्माण में, फैशन डिजाइनिंग और ज्योतिष आदि. ज्योतिष के अनुसार रत्न में अनेक अलग-अलग दैवीय शक्तियां समाहित होती हैं. जिससे मानव जीवन का कल्याण संभव होता है.
रत्न के प्रकार
हिंदू प्राचीन ग्रंथों में 84 प्रकार के रत्नों का वर्णन है, लेकिन ज्योतिष शास्त्र में 9 रत्न ही प्रचलित हैं. जिन्हें नवरत्नों के नाम से भी जाना जाता है. जो इस प्रकार हैं- गोमेद, पन्ना, नीलम, पुखराज, मूंगा, मोती, माणिक्य, लहसुनिया और हीरा रत्न.
रत्न धारण करने की विधि
रत्न बेहद चमत्कारी और लाभकारी होते हैं. नौ ग्रहों के लिए अलग-अलग नवरत्न होते हैं. इन्हें राशि के आधार पर ही धारण किया जाता है. रत्नों का विशेष रूप से लाभ प्राप्त करने के लिए इन्हें विधि-विधान जाप तथा पूजा-पाठ आदि के द्वारा से ही धारण करना चाहिए. रत्न को धारण करने से ग्रह शांति, शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति होती है.
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