पूजा के दौरान शंखनाद क्यों किया जाता है?
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ तथा अन्य रीति-रिवाजों के दौरान शंख बजाया जाता है. मान्यता के अनुसार जिस घर में शंख होता है. वहां लक्ष्मी का वास होता है. धार्मिक ग्रंथों में शंख को मां लक्ष्मी का भाई बताया गया है, क्योंकि लक्ष्मी की तरह शंख भी सागर से ही उत्पन्न हुआ है. इसकी गिनती समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में होती है. इसे बजाने से जहां सभी प्रकार की अशुद्धियां तथा नकारात्मक ऊर्जा का निवारण होता है, वहीं प्राकृतिक शक्तियों की ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है. पूजा शुरू करने से पहले 3 बार शंख बजाना चाहिए. इससे पूजा सार्थक सिद्ध होती है. इसके बजने से देवी देवता प्रसन्न होने के साथ ही मन को शांति प्राप्त होती है आरती के बाद शंख बजाने से सत तत्व की स्थापना होती है.
शंख बजाने से लाभ
-यह धार्मिक शुभता के साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी अति उत्तम है.
-हिंदू धर्म शास्त्र में पूजा पाठ हवन विजय विवाह जैसे प्रत्येक शुभ कार्य में शंख बजाना जरूरी समझा जाता है.
-सुबह-शाम इसे बजाने से सूर्य की हानिकारक किरणों का प्रभाव कम होता है.
-इसमें रखा जल रोगाणु रहित होने के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करता है.
-इसे बजाने से बोलने संबंधित सभी समस्याएं दूर होती हैं.
-इसके बिना पूजा और शुभ कार्य अधूरे माने जाते हैं.
-शंख बजाने से फेफड़ों का व्यायाम होता है. जिससे व्यक्ति के फेफड़े शक्तिशाली बन जाते हैं.
ध्यान रखने योग्य बातें
शंख बजाना एक कला है. इसे बजाने की शुरुआत अत्यंत मंद गति से करनी चाहिए. फिर धीरे-धीरे तीव्रता का समावेश करना चाहिए. ऐसे में व्यक्ति की ऊर्जा का क्रम प्रारंभ से अंत तक बना रहता है.
-इसे बजाते समय व्यक्ति का मुख्य भगवान के सामने होना चाहिए.
-उसका चित्त भक्ति में डूबा हुआ तथा आंखें बंद होनी चाहिए. इससे तन मन प्रसन्न रहता है.
-धार्मिक शास्त्रों के अनुसार घर या पूजा घर में शंख नहीं रखना चाहिए.
-यदि इसे पूजा स्थल में रखना है, तो पूजा स्थल पर तीन पैर वाली लकड़ी की किसी बनी वस्तु पर रखना चाहिए.
-पूजा के समय पीले रंग के कपड़े से इसको साफ करना चाहिए.
-उसके बाद तिलक लगाएं साथ ही पुष्प चढ़ाएं.
-कभी भी अक्षत (चावल) नहीं चढ़ाना चाहिए.
-पूजा के समय इसका मुंह पूजा कर रहे जातक की तरफ होना चाहिए.
-पूजा समाप्त होने पर इसको साफ करके रखना चाहिए.
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