Climate Change: पृथ्वी की ऊपरी परत को नुकसान पहुंचा रहे हैं पिघलते ग्लेशियर

 
Climate Change: पृथ्वी की ऊपरी परत को नुकसान पहुंचा रहे हैं पिघलते ग्लेशियर

दुनिया भर की बर्फ की चादरों और ग्लेशियर (Glaciers) से पिघलती बर्फ के सैटेलाइट आंकड़ों के अध्ययन से पाया गया है कि इसके कारण पृथ्वी की उपरी सतह (Earth Crust) को नुकसान हो रहा है।

जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण पृथ्वी बदल रही है। इसके प्रमुख प्रभावों में ग्लोबल वार्मिंग, महासागरों के जलस्तर का बढ़ना के साथ मौसम के मिजाज में बदलाव शामिल हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन का एक असर पृथ्वी की ऊपरी परत यानी पर्पटी (Earth crust) पर हो रहा है। दुनिया भर की बर्फ की चादरें और ग्लेशियर की पिघलती बर्फ के के कारण पृथ्वी की पर्पटी में गतिविधि होने लगी है। सैटेलाइट के आंकड़ों के अध्ययन से पता चला है कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों के लगातार पिघलने से महासागरों के पानी का वितरण बदला और अंततः पर्पटी विकृत हो गई है। इसकी वजह सतह के बहुत हिस्सों के ऊपर असामान्य रूप से भार की लंबवत और क्षैतिज गतिविधि का होना है।

Climate Change: पृथ्वी की ऊपरी परत को नुकसान पहुंचा रहे हैं पिघलते ग्लेशियर
image credits :glacier melting/pexels

जहां वैज्ञानिक अभी तक बर्फ के पिघलने के कारण पानी और बर्फ दोनों के लंबवत प्रभावों का अध्ययन करते रहे। यह पहली बार है जब क्षैतिज गतिविधियों को जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के अध्ययन में शामिल किया गया है. जियोफिजिकल रिसर्च लैटर्स जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों की टीम ने पाया जहां सतह पर गतिविधि हर साल औसतन एक मीलीमीटर के दसवें हिस्से के स्तर पर होती होती है, इसमें हर साल उल्लेखनीय विविधता आती है. गर्म होते ग्रह (Earth) में बर्फ की चादरों और ग्लेशियर के भार संतुलन का विश्लेषण करते समय शोधकर्ताओं ने पाया कि महाद्वीपों और महासागरों के बीच भार का पुनर्वितरण पर्पटी (Earth crust) में विशेष विकृति ला देते हैं जो समय के हिसाब से बदलती भी रहती है।

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आर्किटक ग्लेशियर की हानि ने व्यापक क्षैतिजीय गतिविधि पैदा की जो 0.15 मिलीमीटर प्रतिवर्ष के मान की थी। शोधकर्ताओं ने पाया कि हिम हानि स्थानीय स्तर के होने के अलावा ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर और आर्कटिक ग्लेशियर ने पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध की पर्पटी में लंबवत और क्षैतिज दोनों तरह की विकृतियां पैदा कीं।

पृथ्वी की पर्पटी उसकी बाहरी खोल को कहा जाता है जिसी गहराई 40 किलोमीटर तक भी रहती है। यह पर्पटी ठोस चट्टानों और खनिजों से मिलकर बनी है। इस पर्पटी और मेटंल के ऊपरी हिस्से को एक ईकाई मान कर उसे थलमंडल (Lithosphere) नाम दिया गया है। जिस तरह पर्पटी की गहराई या मोटाई अलग अलग होती है, उसके तापमान में भी विविधता पाई जाती है। ऊपरी पर्पटी का तापमान आसपास के वायुमंडल और महासागर के अनुसार होता है, रेगिस्तान में बहुत गर्म तो गहरे महासागरों में जमा देने वाला ठंडा. पर्पटी मे आग्नेय, कायांतरित और अवसादी शैल पाए जाते हैं।

लवायु परिवर्तन इन सभी बदलावों की जड़ है, इसी की वजह से आर्टकटिक और अंटार्कटिक दोनों जगह पर तेजी से हिम हानि बढ़ रही है। आज ग्लेशियर 15 साल पहले की तुलना में 31 प्रतिशत ज्यादा बर्फ गंवा रहे हैं। शोधकर्ताओं के पास अप्रैल में पिछले 20 साल में हुई हिम हानि के विशेष सैटेलाइट आंकड़े (Satellite Data) थे। उन्होंने गणना कर पता लगाया कि साल 2015 से दुनिया के 2.2 लाख पर्वतीय ग्लेशियर प्रितवर्श 298 बिलियन मैट्रिक टन बर्फ गंवा रहे हैं।

इसका असर केवल कुछ ही जगह पर या फिर स्थानीय स्तर पर ही नहीं हो रहा है, बल्कि पूरी पृथ्वी इससे प्रभावित हो रही है। ऐसे में भारत भी इससे अछूता नहीं है। इतनी बड़ी मात्रा में हिम हानि क कारण इस सदी के अंत तक भारत के 12 शहर समुद्री जल में तीन फुट तक डूब सकते हैं अगर जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और बढ़ते महासागर जल स्तरों को काबू में ना किया गया तो नासा के मुताबिक भारत के 12 शहरों पर इसका असर हो कर रहेगा।

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