गंदे पानी में कोरोना वायरस का पता लगाएगा सेंसर! भारतीय वैज्ञानिकों को मिली बड़ी कामयाबी
कोरोना की दूसरी लहर का कहर देश में लगातार जारी है. हालांकि कोरोना के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा तैयार वैक्सीन भी असरदार साबित हो रही है. इस बीच ब्रिटेन और भारत के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से एक कम लागत वाला सेंसर विकसित किया है, जो अपशिष्ट जल में कोविड-19 के लिये जिम्मेदार वायरस के अंशों का पता लगाता है.
क्यों खास है ये सेंसर
इस सेंसर की खासियत है कि ये गंदे पानी में कोरोना वायरस के अंशों का पता लगा सकता है. इस सेंसर से इस बात का पता लगाया जा सकेगा कि संक्रमण किस किस हिस्से तक फैला है. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), बॉम्बे और स्ट्रैथसाइडल विश्वविद्यालय ने इस सेंसर को बनाया है. इस सेंसर से विकासशील देशों में कोविड-19 के संक्रमण पर नजर रखना आसान हो जाएगा. साथ ही ये तय किया जा सकेगा किन क्षेत्रों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.
हाल ही में ''सेंसर्स एंड एक्चुएटर्स बी: कैमिकल'' नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अनुसंधान के अनुसार सेंसर का पोर्टेबल उपकरण के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है. इसमें सार्स-कोव-2 वायरस का पता लगाने के लिये मानक पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) जांच का उपयोग किया जाता है. इसमें समयबद्ध गुणवत्तापूर्ण पीसीआर जांच के लिये महंगे रसायनों और प्रयोगशाला की जरूरत नहीं होती.
अन्य वायरस का भी पता करेगा यह सेंसर
मुंबई में एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से एकत्र किए गए अपशिष्ट जल के साथ सेंसर का परीक्षण किया गया था, जिसमें सार्स-कोव-2 राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) था. सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग में चांसलर फेलो डॉ एंडी वार्ड ने कहा: ''कई निम्न-से-मध्यम आय वाले देशों को सामूहिक परीक्षण के लिए आवश्यक सुविधाओं तक सीमित पहुंच के कारण लोगों के बीच कोविड -19 का पता लगाने में चुनौती का सामना करना पड़ता है. अपशिष्ट जल में वायरस के अंशों के बारे में पता चलने से सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों को यह समझने में मदद मिलेगी कि यह बीमारी कितने बड़े क्षेत्र में कितनी फैली है.''
आईआईटी बॉम्बे में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सिद्धार्थ ने कहा, 'हमने जो तरीका विकसित किया है वह सिर्फ सार्स-कोव-2 पर लागू नहीं है, इसे किसी भी अन्य वायरस पर लागू किया जा सकता है, इसलिए यह बहुत बहुमुखी है.'
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