शादी में ही क्यों निभाई जाती है कन्यादान की रस्म, जानें क्या है धार्मिक परंपरा

 
kanyadan


 Marriage: शादियों का सीजन चल रहा है। ऐसे में हम शादी में की जाने वाली रस्में के बारे में बता रहे हैं।  हिंदू धर्म में विवाह के दौरान बहुत सी रस्में निभाई जाती हैं जिनकी अपनी अलग मान्यता है। कहा जाता है कि जब तक सभी रस्में पूरी नहीं हो जाती तब तक कन्या और वर को पति-पत्नी का अधिकार प्राप्त नहीं होता है। हिंदू धर्म में शादी की हर रस्म और रिवाज का अपना महत्व होता है लेकिन इन सभी रस्मों में से कन्यादान की रस्म काफी महत्वपूर्ण होती है। मान्यता है कि कन्यादान सबसे बड़ा दान होता है। भी दानों में से यह दान सबसे बड़ा दान माना जाता है। इस रस्म के तहत हर पिता अपनी बेटी का हाथ वर के हाथ में सौंपता है जिसके बाद कन्या की सारी जिम्मेदारियां वर को निभानी होती हैं। कन्या दान एक ऐसी रस्म है जो कि पिता और बेटी के भावनात्मक रिश्ते को दर्शाती है।


भगवान कृष्ण ने समझाया क्या होता है कन्यादान

भगवान कृष्ण ने जब अर्जुन और सुभद्रा का गंधर्भ विवाह करवाया था, तो कृष्ण के बड़े भाई बलराम ने इसका विरोध किया. भगवान बलराम ने कहा था कि सुभद्रा का कन्यादान नहीं हुआ है और जब तक विवाह में कन्यादान नहीं होता तब तक यह विवाह पूर्ण नहीं माना जाएगा. तब भगवान कृष्ण ने कहा कि पशु की भांति कन्या के दान का समर्थन भला कौन कर सकता है. कन्यादान का सही अर्थ है कन्या का आदान ना की कन्या का दान. शादी विवाह के दौरान कन्या का आदान करते हुए पिता कहता है मैंने अभी तक अपनी बेटी का पालन पोषण किया और उसकी जिम्मेदारी निभाई, मैं आज से आपको अपनी पुत्री सौंपता हूं. इसके बाद वर कन्या की जिम्मेदारी अच्छे से निभाने का वचन देता है. इसी रस्म को कन्या का आदान कहा जाता है.

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कैसे शुरू हुई कन्यादान की प्रथा?

हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार कन्या का आदान सबसे पहले दक्ष प्रजापति द्वारा किया बताया जाता है. दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं थी जिनका विवाह दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव से करवाया था ताकि सृष्टि का संचालन सही तरीके से हो सके उन्होंने अपनी 27 कन्याओं को चंद्र देव को सौंपते हुए कन्या आदान किया था। दक्ष की इन 27 बेटियों को ही 27 नक्षत्र माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार उसी समय से विवाह के दौरान कन्या आदान की प्रथा शुरू हुई।

नए जीवन की शुरुआत के लिए आशीर्वाद 

शादी विवाह के कार्यक्रमों में माता-पिता के लिए अपनी बेटी का कन्यादान करना एक भावुक पल होता है। विवाह के दौरान अपनी पुत्री के हाथ पीले करके उसके हाथ को वर के हाथ में सौंप देना कन्यादान कहलाता है। इस रस्म के जरिए पिता द्वारा अपनी पुत्री की जिम्मेदारी उसके पति के हाथों में सौंपकर उसके नए जीवन की शुरुआत के लिए आशीर्वाद देता है।

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