जानिये मिल्खा सिंह 'The flying sikh' के जीवन के अनकहे और अनसुने पहलुओं के बारे में
दुनिया भर में 'फ्लाइंग सिख' के नाम से मशहूर दिग्गज धावक मिल्खा सिंह 91 साल की उम्र में हम सबको अलविदा कह गए है,लेकिन उनके द्वारा किये गये महान कार्यो से वे हमेशा ही हम सभी के दिलों में अमर रहेंगे.
आईये जानते है पूर्व भारतीय धावक मिल्खा सिंह के जीवन के अनकहे और अनसुने पहलुओं के बारे में-
विभाजन ने दिया था बेहद दुख
1947 में विभाजन के समय अपनी आंखों के सामने अपने परिजनों की हत्या होते देखना उनके लिए दिल दहला देने वाला पल था.
और इस समय वो अपने जीवन में पहली बार रोएं थे.
1956 में मिला स्वर्ण पदक
मिल्खा 1956 में मेलबर्न खेलों में अपना ओलंपिक पदार्पण किया, लेकिन शुरुआती दौर में ही बाहर हो गए. 1958 में, उन्होंने उसी वर्ष राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के बाद दुनिया भर में पहचान बनाई.
वह रोम में 1960 के ओलंपिक में चौथे स्थान पर रहे, उन्होंने 400 मीटर में 45.73 के समय के साथ अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया.
जीवन में एक बार की है जेल यात्रा
एक बार उन्हें बिना टिकट ट्रेन में यात्रा करने के आरोप में तिहाड़ जेल भेज दिया गया था, तब उनकी बहन को जमानत के लिए पैसों का इंतजाम अपने गहने को बेचकर किया था.
अर्जुन अवार्डी
जब मिल्खा सिंह को 2001 में "अर्जुन पुरस्कार" मिला, तो उन्होंने कहा यह '40 साल देर से आया'
फ़िल्म में लिये मात्र एक रुपये
एक साक्षात्कार के दौरान मिल्खा सिंह ने बताया था कि अपने बेटे जीव के कहने पर उन्होंने रंग दे बसंती फिल्म के निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा को महज एक रुपये में अपनी जीवनी दे दी थी.
बेटा और पत्नी भी है खिलाड़ी
मिल्खा की पत्नी निर्मल कौर भी इंडियन वालीबाल टीम की कैप्टन रह चुकी हैं, जबकि उनके पुत्र जीव मिल्खा सिंह गोल्फ के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हैं.
ये भी पढ़ें : ‘फ्लाइंग सिख’ की दौड़ पर लगा विराम, 91 वर्ष की उम्र में कोविड से हुआ निधन