Mahatma Gandhi : भारत में क्रिकेट की शुरुआत बापू करवाएं थे, पढ़िए दिलचस्प कहानी
वार्नर और स्काट दोनों अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी क्रिकेट के बहुत शौकीन थे। भारतीय प्रशासनिक सेवा में जहां जाते वहां पहला काम होता क्रिकेट क्लब खोलना। संयोग से दोनों की नियुक्ति एक साथ में होती है। क्रिकेट के शौकीन थे, लेकिन दोनों के दोनों नस्लवाद के कीडे के काटे हुए थे।
पांच टीम बनाई और एक क्रिकेट टूर्नामेंन्ट आरंभ किया। टूर्नामेंन्ट का नाम रखा गया पेंटैंगुलर क्रिकेट लीग। टीमें हिन्दू,मुस्लिम,परसियन,एलीट्स और ब्रिटिश काउन्टी नामों से पहचान जाती थीं। इन्हीं पांच नामों के कारण टूर्नामेंन्ट कहलाया पेंटागुलर लीग।
टूर्नामेंन्ट चल पड़ा ,महात्मा गांधी वर्धा में थें। अखबार में उन्होने क्रिकेट टूर्नामेंन्ट के बारे में पढ़ा और आग बबूला हो गये। लार्ड विलिंगटन को एैसा कड़क पत्र लिखा कि राजे रजवाडों का ये अंग्रेज अधिपत्य का टूर्नामेंन्ट बन्द हो गया ।
महात्मा गांधी सिर्फ अंग्रेजों से नहीं लड रहे थे। वे हर उस बुराई से लड पडते थे, जो इंसानियत की राह में कांटा बने।
उन्होंने सांप्रदायिक और जातीय आधार पर टूर्नामेंन्ट का विरोध किया। उनके बयान को अखबारों में प्रमुखता से छापा गया।
जनवरी 1934 में पेंटैंगुलर टूर्नामेंन्ट पर ब्रिटिश पार्ल्यामेंट ने रोक लगा दी और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के तहत महाराजा पटियाला की ट्राफी के साथ टूर्नामेंट का नाम बदल कर रणजीतसिंह के नाम से रणजी ट्रॉफी का आयोजन शुरू किया गया। और टीमें हिन्दू , मुस्लिम के बजाय रियासत के या प्रान्तों के नाम से आने लगीं। आज उन पांच टीमों के बजाय 37 टीमें खेेलती है ।
बापू ने क्रिकेट में भी एैसा हाथ चलाया कि क्रिकेट के जरिए साम्प्रदायिकता फैलाने के अंग्रेजी कुचक्र की गिल्लियां उड़गई। ये रणजी ट्रौफी न होती तो क्या होता ये क्रिकेट खेलने वाले बेहतर समझ सकते है ।
यूं कहें तो भारत को क्रिकेट खेलने का मौका भी बापू ने ही दिलवाया।