खिलाड़ी जिसे कभी हिटलर ने अपनी टीम में बुलाया था,आखरी समय भारत में ज़िंदगी कंगाली में गुज़री

 
खिलाड़ी जिसे कभी हिटलर ने अपनी टीम में बुलाया था,आखरी समय भारत में ज़िंदगी कंगाली में गुज़री

तारीख 29 अगस्त सन 1905, स्थान प्रयागराज, भारत ये तारीख एक जादूगर के पैदा होने के लिए जाना जाता है। जी है! जादूगर वो वाला नही जो पिजड़े में से कोई कबूतर गायब कर दे। जो पल भरते ही पर्दे के पीछे से किसी बस्तु या आम इंसान को गायब कर दे।

इस तारीख को जन्म हुआ, हॉकी के जादूगर,मेजर ध्यानचंद का। उसी दिन उनके याद में स्पोर्ट्स डे भी बनाया जाता हैं। कहते है मेजर से गेंद छीनना मगरमच्छ के मुह में हाथ डालने के बराबर था।

खिलाड़ी जिसे कभी हिटलर ने अपनी टीम में बुलाया था,आखरी समय भारत में ज़िंदगी कंगाली में गुज़री
मेजर ध्यानचंद

मेजर ध्यानचंद के स्टिक से गेंद ऐसे चिपक जाती, मानो कोई चुम्बक से धातु कई बार बिरोधी टीम उनकी स्टिक तोड़ देती। आखिर स्टिक के अंदर ऐसा क्या लगा जो गेंद एक बार चिपक जाने ले बाद सीधा गोल में ही नज़र आती।

लेकिन बिरोधी टीम को कौन समझाए ये चुम्बक उनके स्टिक में नही, चुम्बक मेजर के आकर्षक में था ।
चुम्बक मेजर अपने आप मे थे,। स्टिक टूटने के बाद मेजर उस स्टिक को पट्टी की मदद से जोड़ लेते,
दुबारा शुरू हो जाते,

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साल 1928,ओलिंपिक में मेजर ध्यान चंद के अगुवाई में भारत ने गोल्ड मेडल जीता। 1932 में भारतीय टीम ओलिंपिक खेलने जर्मनी गई। वहाँ वो सब को रौंदते हुए फाइनल में पहुँच गए,फाइनल में 40 हज़ार के करीब दर्शक मैच देखने आए थे।

फाइनल में फर्स्ट हॉफ टक्कर का रहा। भारत सिर्फ एक गोल कर सका। दूसरे हॉफ में मेजर ध्यानचंद ने अपने जूते उतार के नंगे पाँव हॉकी खेली। जर्मनी को 8-1 से रौंद दिया। गोल्ड मेडल जीता भारत के लिए। गोल करने के चक्कर मे ध्यानचंद को बिरोधी गोलकीपर की स्टिक मुँह पे लग गई।

जिसकी बजह से उनका एक दाँत भी टूट गया था। भारत का प्रदर्शन देखते हुए हिटलर ने भारतीय टीम को डिनर टेबल पे बुलाया। जहाँ हिटलर ने ध्यानचंद को कर्नल पद लालच देकर अपनी टीम में खिलाना चाहा। मेजर ने साफ साफ मना कर दिया, कहा वो सिर्फ भारत के लिए खेलते है।

क्रिकेट के महारथी सर डॉन ब्रैडमैन उनके बड़े कायल थे, वो कहते थे जैसे क्रिकेटर तेज़ी से रन बनाते है। वैसे ही ध्यानचंद गोल दागते है।

अपने आखरी समय मेजर ध्यान की ज़िंदगी कंगाली में गुज़री। पैसे-पैसे के लिए मेजर का परिवार मोहताज़ हो गया। आखरी समय उनके लीवर में इंफेक्शन हो गया। 3 दिसंबर 1979 में आखरी साँस ली बाद में उनकी याद में दिल्ली स्थित एक सपोर्ट स्टेडियम मेजर ध्यानचंद स्टेडियम बनाया गया।

https://youtu.be/tpBMP6GC-Yo

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