'रात और चाँद' – आचार्य प्रशांत का काव्य संग्रह जो सिखाता है जीवन के गूढ़ सत्य

वेदांत के प्रखर व्याख्याता, बेस्टसेलिंग लेखक और लाखों के प्रेरणास्रोत आचार्य प्रशांत का एक नया रूप साहित्य प्रेमियों को चमत्कृत कर रहा है — कवि प्रशांत। उनके ताज़ा काव्य संग्रह 'रात और चाँद' ने न केवल पाठकों, बल्कि आलोचकों का भी ध्यान खींचा है। यह संग्रह उनकी आध्यात्मिक गहराई और काव्यात्मक संवेदनशीलता का अनूठा संगम है।
कविता जो छू लेती है आत्मा
'रात और चाँद' की रचनाएँ मनुष्य के भीतर छिपे अस्तित्ववादी प्रश्नों — चेतना, मौन, और करुणा — को सरल शब्दों में पिरोती हैं। संग्रह की प्रमुख कविता 'सोने का हक' में वे लिखते हैं:
"मन शांत / सब के सोने पर मेरा एकांत... / जब मेरा सन्नाटा गहरा और गहरा रहा होगा / ठीक तब तुम मुझे आ जगाओगे।"
इन पंक्तियों में वह द्वंद्व झलकता है जब आत्मज्ञानी व्यक्ति विश्राम चाहता है, पर समाज के प्रति दायित्वबोध उसे वापस लाता है।
जीवन से जुड़ी पीड़ा को शब्द देना
संग्रह की एक अन्य कविता 'जब गीत न अर्पित कर पाओ' संघर्ष के उन पलों को दर्शाती है जब मन थककर हार मान लेता है, पर हार नहीं मानता:
"जब गीत न अर्पित कर पाओ / तो ग्लानि न लेना ओ मन / तुम्हारी व्यथित साँसों का / शोर ही संगीत है।"
आचार्य इसे "अस्तित्व की लड़ाई" बताते हैं, जहाँ टूटना भी जीवन का एक सुर बन जाता है।
गीता को कविता में ढालने का प्रयास
आचार्य प्रशांत के दो वर्षीय 'गीता पाठ्यक्रम' का एक हिस्सा उनकी काव्यात्मक प्रतिभा है। वे गीता के श्लोकों को सरल कविताओं में बदलकर युवाओं तक पहुँचा रहे हैं। जैसे, गीता 3.4 के लिए उनका भावानुवाद:
"न कर्म में प्रवृत्ति से, / न कर्म के परित्याग से / आत्मज्ञान प्राप्त होता है..."
इस तरह, वे नई पीढ़ी को शास्त्रों से जोड़ने का अनूठा तरीका अपना रहे हैं।
क्यों खास है यह संग्रह?
-
सरल भाषा, गहन भाव: जटिल दार्शनिक सिद्धांतों को सहज काव्यशैली में पिरोना।
-
युवाओं से जुड़ाव: सोशल मीडिया पर उनकी कविताएँ वायरल हो रही हैं, खासकर १८-३५ आयुवर्ग में।
-
अध्यात्म और कला का समन्वय: आचार्य मानते हैं कि "कविता सत्य का वह स्वरूप है जो हृदय को छू ले।"
पाठक और आलोचक क्या कहते हैं?
साहित्यकार डॉ. प्रेमशंकर ने इसे "हिंदी साहित्य में एक नई बयार" बताया है। वहीं, युवा पाठकों का कहना है कि यह संग्रह उन्हें आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित कर रहा है।
अंतिम शब्द:
आचार्य प्रशांत की कविताएँ सिद्ध करती हैं कि अध्यात्म और कला अलग-अलग धाराएँ नहीं, बल्कि एक ही सत्य के दो पहलू हैं। 'रात और चाँद' न केवल पठनीय है, बल्कि मनन करने योग्य भी।