हर प्राइवेट प्रॉपर्टी को सरकार नहीं ले सकती, Supreme Cour का ऐतिहासिक फैसला
Supreme Cour ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि सरकार सभी निजी संपत्तियों का अधिग्रहण नहीं कर सकती, जब तक कि इसका सार्वजनिक हित में इस्तेमाल न हो। 9 जजों की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि निजी स्वामित्व का अधिकार समुदाय या सार्वजनिक हित के बिना सरकार द्वारा अधिगृहीत नहीं किया जा सकता। यह फैसला पहले के उन निर्णयों को पलटता है जो समाजवादी और आर्थिक विचारधारा से प्रभावित थे, जिनमें राज्य को सामूहिक लाभ के लिए निजी संपत्तियों का अधिग्रहण करने की अनुमति दी गई थी।
निजी संपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट का प्रमुख फैसला
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों पर सरकार का अधिकार नहीं हो सकता। जबकि राज्य उन संसाधनों का दावा कर सकता है जो सार्वजनिक भलाई के लिए आवश्यक हैं, निजी संपत्तियां संविधान के तहत संरक्षित हैं। इस फैसले से 1978 का वह फैसला भी बदल दिया गया जिसमें सरकार को सामाजिक उद्देश्य के लिए निजी संपत्तियों पर नियंत्रण की अनुमति थी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उसका काम आर्थिक नीतियों को निर्धारित करना नहीं है, बल्कि आर्थिक लोकतंत्र को सुनिश्चित करना है।
पीठ में विभाजित राय
इस फैसले में अधिकांश जजों ने बहुमत का समर्थन किया, हालांकि जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सुधांशु धूलिया ने आंशिक या पूर्ण असहमति जताई, जो निजी संपत्तियों पर राज्य के अधिकार पर उनके विभिन्न दृष्टिकोण को दर्शाता है।
9 जजों की संविधान पीठ, जिसमें जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे, ने इस मामले में अप्रैल में विस्तृत सुनवाई की और मई में फैसला सुरक्षित रखा था।