भारत के अलावा कौन से देश अफगान नागरिकों की मदद के लिए आगे आए, अब शरणार्थियों के भविष्य का क्या होगा
तालिबान ने महज 22 दिनों में ही अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़ गए हैं और हथियारबंद लड़ाकों को राष्ट्रपति भवन में टहलते देखा जा सकता है अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत डेबरा ल्योन्स की यह चेतावनी एक हैरतअंगेज खबर की तरह आई थी क्योंकि तब चर्चाएं पश्चिमी सेनाओं के स्वदेश लौटने के इर्द-गिर्द केंद्रित थीं और तालिबान की इस बढ़त पर किसी का ध्यान नहीं था। फिर, पिछले हफ्ते अमेरिका में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें कहा गया कि 30 दिन के भीतर तालिबान राजधानी काबुल के मुहाने पर होगा और 90 दिन के भीतर देश पर कब्जा कर सकता है।
इस बीच जहां अफगानिस्तान में युद्ध में शामिल कई पश्चिमी देशों ने अपनी सेना की मदद करने वाले अफगानों को शरण देने की बात कही है। वहीं भारत ने भी वहां फंसे लोगों को शरण देने के साथ सुरक्षित निकालने की बात कही है। वहीं अब तक भारत के अलावा कौन से देश अफगान नागरिकों की मदद के लिए आगे आए हैं और कौन से देशों ने मदद से इनकार कर दिया। सबसे अहम बात यह है कि शरणार्थियों को लेने से इनकार करने वाले ज्यादातर देश अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता का स्वागत कर चुके हैं या काबुल में आगे स्थिति बेहतर होने की उम्मीद जता चुके हैं।
कोन कोन से देशों ने किया अफगान शरणार्थियों को लेने का ऐलान?
- ब्रिटेन : द टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन ने तालिबान के शासन के डर से भागे लोगों को अपने शरणार्थी कार्यक्रम के समानंतर स्कीम के जरिए शरण देने की योजना रखी है। बताया गया है कि ब्रिटिश सरकार तकरीबन 20 हजार अफगान शरणार्थियों को बसाएगी।
- अमेरिका अमेरिकी चैनल फॉक्स न्यूज ने 15 अगस्त को बताया था कि रक्षा विभाग ने अफगान शरणार्थियों को विस्कॉन्सिन में फोर्ट मैककॉय और टेक्सास में फोर्ट ब्लिस जैसे सैन्य ठिकानों पर बसाने का फैसला किया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, स्पेशल इमिग्रेंट वीजा के तहत योग्य 30,000 अफगानों को जल्दी ही बसाया जाएगा।
- भारत : अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता पर कब्जा जमाने के दो दिन बाद यह घोषणा कर दी गई थी। न्यूज एजेंसी के सूत्रों के मुताबिक, एक दिन पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने भी कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) की बैठक में कहा था कि अफगानिस्तान में फंसे अल्पसंख्यकों को भारत में तुरंत शरण देने के इंतजाम किए जाएंगे।
- कनाडा : कनाडा ने 15 अगस्त को काबुल स्थित अपना दूतावास बंद कर दिया और अफगानिस्तान के साथ राजनयिक रिश्ते निलंबित कर दिए। इससे कुछ दिन पहले ही कनाडा के इमीग्रेशन मिनिस्टर मार्को मेंडिसीनो ने कहा था कि कनाडा महिला नेता, सरकारी कर्मचारी और तालिबान से खतरा महसूस करने वाले 20,000 अफगानों को शरण देगा।
- अल्बानिया : अल्बानिया के प्रधानमंत्री एडी रामा ने 15 अगस्त को कहा कि, उनका देश अफगानिस्तान में वेस्टर्न पीस फोर्स के साथ काम करने वाले सैकड़ों अफगानों को अस्थायी रूप से शरण देगा। प्रधानमंत्री ने कहा हम 'ना' नहीं कहेंगे, सिर्फ इसलिए नहीं कि हमारे सहयोगियों ने कहा है, बल्कि इसलिए कि हम अल्बानिया हैं. सुरक्षा की जरूरत वाले लोगों की मदद करना अल्बानिया में एक परंपरा है।
- ताजिकिस्तान : ताजिक सरकार ने अफगानिस्तान के हालात को देखते हुए जुलाई में ही एक लाख अफगान नागरिकों को शरण देने का ऐलान कर दिया था।
अफगान शरणार्थी अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया के दूतावासों पर पहुंचे और इन देशों के अधिकारियों से उनकी मदद करने की मांग पुरजोर तरीके से उठाई। कई लोग ब्रिटिश उच्चायोग पर भी पहुंचे हुए थे। दूसरी ओर अफगानिस्तान के दूतावास के बाहर भी लोगों की तादाद दिन ब दिन बढ़ती जा रह है।
बता दें कि ज्यादातर लोग ऐसे हैं, जिन्हें अपने पासपोर्ट रिन्यू कराने हैं, लेकिन दूतावास के अधिकारी भी अभी उन्हें कोई ठोस जवाब देने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि तालिबानी राज में नए कायदे कानून इसकी इजाजत देंगे या नहीं और नियमों में कोई बदलाव होता है ऐसे में शरणार्थियों के सामने भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कई महिला शरणार्थी तो रोते हुए देखी गईं।