Germany Nuclear Power: जर्मनी ने बंद किये अंतिम 3 न्यूक्लियर पावर प्लांट, जानें क्या थी वजह
Germany Nuclear Power: जर्मनी ने अपने तीनों न्यूक्लियर पावर प्लांट बंद कर दिए हैं. सरकार ने इसकी वजह बताई है कि इससे लोगों की सुरक्षा को खतरा है. जर्मनी के पर्यावरण मंत्री स्टेफी लेम्के ने कहा कि न्यूक्लियर एनर्जी के मुद्दे पर हमारी स्थिति बिल्कुल साफ है. उन्होंने कहा, 'ये न तो सुरक्षित हैं, और न ही पर्यावरण के लिए बेहतर हैं.' अपने तीनों न्यूक्लियर प्लांट्स को बंद कर जर्मनी ने 60 साल पहले शुरू हुए परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल के सिलसिले को बंद कर दिया. दरअसल, जर्मनी 2035 तक पूरी तरह से रिन्युएबल एनर्जी पर शिफ्ट करना चाह रहा है. जिसके लिए सभी परमाणु पावर प्लांट्स को बंद करने का फैसला किया है.
जर्मनी की परमाणु ऊर्जा से निर्भरता पूरी तरह से समाप्त हो गई है. लंबे समय से जर्मनी में परमाणु ऊर्जा विरोधी आंदोलन चल रहा था. अब जर्मनी ऊर्जा की कमी को कोयले से पूरा करेगा. वे उसे कम प्रदूषण वाली ऊर्जा के एक विश्वसनीय स्रोत को बंद करने के रूप में देख रहे हैं. ऊर्जा संकट के बीच परमाणु संयंत्रों को बंद करने के फैसले पर जर्मनी में विवाद है, लेकिन जर्मन सरकार अपने फैसले पर मजबूती के साथ खड़ी है.
Germany Nuclear Power प्लांट क्यों हुआ बंद
जर्मनी के पर्यावरण और उपभोक्ता संरक्षण मंत्री और ग्रीन पार्टी के सदस्य स्टेफी लेमके ने कहा कि जर्मन सरकार की स्थिति स्पष्ट है: परमाणु ऊर्जा हरित नहीं है. न ही यह टिकाऊ है. हम ऊर्जा उत्पादन के एक नए युग की शुरुआत कर रहे हैं. वे इस प्रौद्योगिकी से उत्पन्न जोखिमों के बारे में चिंतित थे. इनमें से कुछ समूह परमाणु हथियारों के खिलाफ थे.
कहां से मिली न्यूक्लियर पावर प्लांट बंद करने की प्रेरणा
जर्मन सरकार को परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को बंद करने की ताकत दुनियाभर में हुए दुर्घटनाओं ने दी. 1979 में पेन्सिलवेनिया में थ्री माइल द्वीप परमाणु ऊर्जा संयंत्र का एक हिस्सा पिघल गया था. वहीं, 1986 में चेरनोबिल में परमाणु संयंत्र में भयानक तबाही हुई, जिसने रेडियोधर्मी कचरे का एक बादल बनाया जो जर्मनी के कुछ हिस्सों में पहुंच गया.
फुकुशिमा में कभी ना भूलने वाला हुआ हादसा
साल 2000 में जर्मन सरकार ने परमाणु ऊर्जा को चरणबद्ध तरीके से बंद करने और संयंत्रों को बंद करना शुरू करने का संकल्प लिया. लेकिन जब 2009 में एक नई सरकार सत्ता में आई, तो ऐसा लगा कि मानो परमाणु को एक ब्रिजिंग तकनीक के रूप में राहत मिलेगी जो देश को नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ने में मदद करेगी. तभी जापान के फुकुशिमा में हादसा हो गया. जीवाश्म ईंधन से वायु प्रदूषण एक वर्ष में 87 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार है.
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