1990-94 में रवांडा में हजारों तुत्सी नस्ल की महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था, पढ़िए पूरी स्टोरी
आज भी रवांडा में हज़ारों की संख्या में ऐसे युवक एवं युवतियां है जिनके पास पिता नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि उनके पिता उन्हें छोड़कर भाग गये या उनकी मृत्यु हो चुकी है। बल्कि उनकी माताओं को भी इसकी जानकारी नहीं है कि उनके पिता कौन है?
1990-94 में रवांडा में हजारों तुत्सी नस्ल की महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और हजारों हूतु नस्ल के पुरुष ने अपनी तुत्सी नस्ल की पत्नियों को अपने घरों से भगा दिया था। उसके बाद जो बच्चें जन्म लिये उसके पास माँ तो थी मगर कोई बाप नहीं था।
अब फिर से वही सवाल है कि क्या उन महिलाओं को प्रताड़ित केवल इसलिए किया गया था की वह महिला थी? अगर आपका जवाब "हाँ" में है तब तुत्सी नस्ल के उन आठ लाख लोगों को क्यों मारा गया जिसमें महिला एवं पुरुष दोनों शामिल थे? आइये थोड़ा इस मुद्दें की जड़ में चलते है।
एक समय में रेडियो रवांडा काफी चर्चित हुआ करता था। रवांडा में बहुसंख्यक 'हुतु नस्ल' के हाथों में सत्ता थी। सरकार के द्वारा उसी रेडियो रवांडा के जरिये अल्पसंख्यक 'तुत्सी नस्ल' को "कॉक्रोच" बोलकर सम्बोधित किया जाता था और बहुसंख्यक हूती नस्ल के लोगों को तुत्सी नस्ल के लोगों के विरुद्ध हिंसा के लिये उकसाया जाता था।
परिणामस्वरूप पड़ोसियों ने पड़ोसियों को मारा, शिक्षकों ने स्कूलों में बच्चों को मारा, पादरियों एवं ननों ने चर्चों में शरण लिए लोगों पर बुलडोजर चलवा दिया। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग चार महीनों तक चले इस जनसंहार में लगभग आठ लाख तुत्सी नस्ल के लोग मारे गये थे। इतना बड़ा जनसंहार एक दिन में सम्भव नहीं हुआ बल्कि नफ़रत को पचासों वर्षों से हवा दिया जा रहा था।
जब दुनिया रवांडा के जनसंहार को याद करना शुरू किया तब दो दशकों के बाद अमेरिका, बेल्जियम और फ़्रांस को भी अपनी ख़ामोशी पर माफ़ी माँगनी पड़ी थी।