World IVF Day 2023: अब IVF में भी  AI का यूज, भारत को मिल रही दुनिया सबसे ज्यादा सफलता 

 
World IVF Day 2023: अब IVF में भी  AI का यूज, भारत को मिल रही दुनिया सबसे ज्यादा सफलता 

World IVF Day: भारत उन देशों में है जहां दुनिया की दूसरी आइवीएफ बेबी 3 अक्टूबर 1978 को पैदा हुई थी। दुनिया के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी से सिर्फ 67 दिनों बाद। आज करीब 55 सालों बाद भारत में करीब 2600 से ज्यादा फर्टिलिटी क्लीनिक हैं Al जो अमरीका के बाद सर्वाधिक है। इस तरह पहले आइवीएफ बेबी पैदा होने के 55 साल बाद भारत दुनिया का इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट कैपिटल बनकर उभर रहा है। यहां आइवीएफ में अब एआइ की मदद भी ली जा रही है, जिससे सफलता दर गत 7 साल में बढ़कर 60 से 75% तक पहुंच गई है, जो 35% हुआ करती थी। यह कहना है कि नितिज मुर्डिया का, जो 116 केंद्रों के स साथ भारत में सबसे बड़ी आइवीएफ चैन चलाने का दावा करते हैं। मुर्डिया के अनुसार अब एआइ प्रयोग से महिला के चार-पांच भ्रूणों में से ये पता लगा लेते हैं कि सबसे अधिक सफलता की संभावना किसमें है।

दुनिया से ज्यादा है भारत में सफलता की दर

इंडस्ट्री अनुमानों के अनुसार पूरी दुनिया में अब तक 1 करोड़ 20 लाख आइवीएफ बच्चे पैदा हो चुके हैं, जिनके लिए दुनिया में 2 करोड़ अस्सी लाख आइवीएफ साइकिल्स संपन्न हुईं। भारत की बात करें तो भारत में हर साल 2 लाख 80 हजार आइवीएफ साइकिल हो रहे हैं। एक साइकिल में पैरेंट के ऊपर करीब डेढ लाख रुपए का खर्च आता है। लेकिन गौर करने की बात ये है कि हर साइकल से बच्चा हाथ में नहीं आता है। भारत में एक लाइव बर्थ के लिए पैरेंट्स को करीब 1.80 साइकिल्स से "गुजरना होता है। यानी पैरेंट पर खर्च करीब 2 से तीन लाख तक आ जाता है। हाल में डब्ल्यूएचओ ने बताया था कि दुनिया का करीब हर छठवा व्यक्ति (17.5 फीसदी आबादी) जीवन में इनफर्टिलिटी का सामना करता है। वहीं, भारत में जो युगल इनफर्टिलिटी का सामना कर रहे हैं उनकी संख्या आबादी की 10 से 15 फीसदी हो सकती है। लेकिन इनमें एक फीसदी ही इलाज के लिए आगे आते हैं।

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कैसे होते हैं आइवीएफ बच्चे ?

सस्ते व बेहतर इलाज के कारण भारत में दुनिया की नपुंसकता का इलाज की राजधानी बनने की संभावनाएं एआरटी एक्ट से अब मरीजों का भरोसा तेजी से बढ़ेगा।आइवीएफ से पैदा हुए बच्चे पूरी तरह से सामान्य होते हैं। हमारे यहां साल में करीब 15 मरीज विदेशों से भी इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। आइवीएफ से तीन से चार प्रतिशत प्रीटर्म और कम वजन के बच्चे पैदा होने की आशंका ज्यादा होती है। लेकिन तीन साल के बाद ये आम बच्चों जैसे ही हो जाते है।

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