ये भी जानें : कैसे काम करता Railway का सीट बुकिंग सिस्टम, पढ़ें पूरा प्रोसेस

 
ये भी जानें : कैसे काम करता Railway का सीट बुकिंग सिस्टम, पढ़ें पूरा प्रोसेस

Railway Ticket Booking System: भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा और एशिया का दूसरा सबसे बड़ा बड़ा रेल नेटवर्क है. लगभग 7 हजार ट्रेनों द्वारा लाखों यात्री अपनी मंजिल तक पहुंचाते हैं. अगर आपने कभी ट्रेन में रिजर्वेशन किया है तो देखा होगा कि IRCTC आपको सीट चुनने की अनुमति नहीं देता है. लेकिन कभी आपने सोचा है कि जैसे सिनेमा हॉल में हम अपनी मनचाही सीट बुक कर सकते हैं. वैसे ही ट्रेन में क्यों नहीं? आइए इसके पीछे का का कारण आज हम आपको बताते हैं.

इस कारण के पीछे रेलवे (Railway) का पूरा मैकेनिजम काम करता है. ट्रेन में सीट बुक करना किसी थिएटर में सीट बुक करने से कहीं अधिक अलग है. फिल्म थिएटर एक हॉल है, जबकि ट्रेन एक चलती हुई वस्तु है. इसलिए ट्रेनों में सुरक्षा की एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है. इसलिए भारतीय रेलवे टिकट बुकिंग सॉफ्टवेयर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि ये टिकट इस तरह से बुक करेगा, जिससे ट्रेन में समान रूप से लोड वितरित किया जा सके.

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ये भी जानें : कैसे काम करता Railway का सीट बुकिंग सिस्टम, पढ़ें पूरा प्रोसेस
Source- Indian Railways/Twitter

ऐसे होती है सीट बुक

इसे आसान भाषा में ऐसे समझिए- आप कल्पना करिए कि किसी ट्रेन में S1, S2 S3… S10 नंबर वाले स्लीपर कोच हैं. इस सभी कोच में 72-72 सीटें हैं. इस ट्रेन के स्लीपर क्लास में जब कोई पहली बार टिकट बुक करेगा, तो सॉफ्टवेयर मध्य कोच में एक सीट आवंटित करेगा. जैसे कि कोच S5, 30-40 के बीच की संख्या. इसके अलावा रेलवे पहले निचली बर्थ को भरता है, ताकि कम गुरुत्वाकर्षण केंद्र प्राप्त किया जा सके.

आखिरी में सीट बुक करने पर मिलती है अपर बर्थ यानी रेलवे सॉफ्टवेयर इस तरह से सीटें बुक करता है कि सभी कोचों में एक समान यात्री हों. इसके साथ ही ट्रेन में सीटें बीच की सीटों (36) से शुरू होकर गेट के पास की सीटों तक यानी 1-2 या 71-72 से निचली बर्थ से ऊपरी तक भरी जाती हैं. रेलवे बस एक उचित संतुलन बनाने के लिए ऐसा करता है, ताकि सभी कोच पर समान भार पड़े. इसीलिए जब आप आखिरी में टिकट बुक करते हैं, तो आपको हमेशा ऊपरी बर्थ और सीट लगभग 2-3 या 70 के आसपास आवंटित की जाती है.

इस तरीके से न हो टिकट तो?

ट्रेन एक चलती हुए वस्तु है. ट्रेन की स्पीड करीब 100 किलोमीटर प्रति घंटा तक होती है. ऐसे में इसमें कई तरह के बल और मैकेनिजम काम करता है. जरा सोचिए अगर S1, S2, S3 पूरी तरह से भरे हुए हैं और S5, S6 पूरी तरह से खाली हैं और अन्य आंशिक रूप से भरे हुए हैं. ऐसे में जब ट्रेन एक मोड़ लेती है, तो कुछ डिब्बे अधिकतम अपकेंद्र बल (centrifugal force) का सामना करते हैं और कुछ न्यूनतम, और इससे ट्रेन के पटरी से उतरने की संभावना अधिक होती है.इसलिए रेलवे को इस सिस्टम से टिकट से बुक बुक करना पड़ता है.

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