जाति न पूछो आईएएस की
शुभम कुमार आईएएस टॉपर हुए । जात पात से ऊपर उठने की इच्छा रखने वाले समस्त समष्ठियों के लिए यह गर्व का विषय है। उनका " कुमार" सरनेम अर्थात कुलनाम किसी जाति विशेष का प्रतिनिधित्व नहीं करता। यह जात पात के दलदल में धंसे समस्त हिंदी पट्टी की कलुषित भावना को करारा जवाब है। कुमार कुलनाम के नाम के आधार पर उनसे कोई अनुराग या विद्वेष नहीं पाला जा सकता है। यह जाति भंजक परिकल्पना की आदर्श स्थिति है।
यह ठीक उसी तरह है जैसा कि कबीर की जब जात न पूछो साधु के आह्वान को जब नहीं सुना गया तो कृपाण के बल से हिंद के दुश्मनों से मुक़ाबिल गोविंद सिंह जी ने पांचों वर्ण को इकट्ठा किया और सबको "सिंह" साहिबान के रूप में दीक्षित कर दिया। ठोस जातीय असंवेदनशीलता को पिघलाने में विफल रहे बाबा अंबेडकर ने हारकर नव बौद्ध बनने का निर्णय कर लिया था।
इसबार यूपीएससी के सिविल सेवा परीक्षा में चयनित 25 अभ्यर्थियों में से 13 पुरुष और 12 महिलाएं सरनेम देखने से ज्यादातर के बारे में स्पष्ट नहीं है कि वह किस जाति से हैं। हां, खंगालने पर यह जरूर पता लगा है कि सिविल सेवा अधिकारियों के चयन परीक्षा से ज्यादातर ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं। औसत सामान्य परिवार से आने वाले लोग हैं। उनके लिए महंगी कोचिंग की व्यवस्था में पल बढ़ पाना मुश्किल था। मेधावियों का लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ सिविल सेवा परीक्षा में टॉपर बनना था।