एक नरसंहार: 90 के दशक में जब बिहार में मुसलमानों की लाशों को गोभी की खेतों में गाड़ दिया गया था
24 अक्टूबर 1989, बिहार में कांग्रेस के सत्येंद्र नारायण सिन्हा मुख्यमंत्री और केंद्र में राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे। जिस दिन बिहार के भागलपुर में हिंदू और मुस्लिमों के बीच साजिशों के तहत एक ऐसा दंगा कराया गया जिसकी नफरत आज तक पल रही है।
24 अक्टूबर आते ही भागलपुर नरसंहार याद आने लगता है। कितनी भयावह स्थिति रही होगी 24 अक्टूबर 1989 का वह दिन यह कल्पना करना भी मुश्किल है। प्रधानमंत्री राजीव गाँधी का कार्यकाल हाशिमपुरा और मलियाना से शुरू होकर सिक्ख दँगा होते हुए भागलपुर नरसंहार पर ख़त्म हुआ। सिल्क सिटी से मशहूर भागलपुर में मुसलमानों की लाशों की शकरकन्दी की तरह गोभी की खेतों में गाड़ दिया गया था।
शुरुआत में बिहार के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री का नाम लेने का मक़सद सिर्फ ये है कि हिन्दोस्तान के किसी भी सूबे में जब भी नरसंहार हुआ वो कांग्रेस की शासन में हुआ। हमारे मुल्क में 12 से ज़्यादह बड़े मुस्लिम नरसंहार हुए।
यही वो दंगा था जिसके बाद लालू प्रसाद यादव सियासी तौर पर काफ़ी मज़बूत हुए। इसी दंगे के बाद राजद का मुस्लिम-यादव समीकरण बना। कहा जाता है भागलपुर दंगे में मुसलमानों के ख़िलाफ़ 2 जातियों ने सबसे ज़्यादा उपद्रव किया था। यादव और गंगोता… इस दंगे में 93% मुसलमानों की हत्या हुई थी।
1989 में हुए भागलपुर दंगों के बाद से ही 1992 में बाबरी मस्जिद के खिलाफ आंदोलन तेज़ हुआ था। ये वही दौर था जिसके बाद पूरे देश मे हर तरफ हिंसा फैली हुई थी। अगर कांग्रेस सरकार ने भागलपुर दंगों पर कंट्रोल कर लिया होता तो शायद 1992 में हुए बाबरी की शहादत/मुम्बई दंगे को रोका जा सकता था, लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ।