आख़िर “पाक के आतंकियों” ने हमले के लिए भारत की संसद को ही क्यों चुना ?
आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए एक सरदर्द बना हुआ हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा हैं। आतंकवादी संगठन के सीईओ मूलतः पाकिस्तानी होते हैं। वैसे तो भारत में कई आतंकी हमले हुए हैं परंतु सबसे गंभीर हमला 13 दिसंबर 2001 को लोकतंत्र के मंदिर पर हुआ। इस हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। भारतीय सुरक्षा बलों ने इसमें शामिल सभी पांचों आतंकियों को मौके पर ही मौत के घाट उतार दिया था। 13 दिसंबर 2001 को जब सभी आम लोग अपने रोजमर्रा की दिनचर्या में व्यस्त थे, तभी एक खबर ने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया था। ये खबर संसद पर हुए हमले से जुड़ी थी।
इसके बाद सभी की नजरें टीवी सेट पर आने वाली पलपल की खबर पर ही जमी रही थीं। पहली बार देश की संसद पर आतंकियों ने हमला किया था। इनसे निपटने संसद के सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी थी। 45 मिनट तक आतंकियों के साथ सुरक्षाकर्मियों की मुठभेड़ जारी रही और अंत में सभी पाँच आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया गया था। इस हमले को जैश ए मोहम्मद के पांच आतंकियों ने अंजाम दिया था। हमले के लिए संसद को यूं ही नहीं चुना गया था, बल्कि इसके पीछे आतंकी ये जताना चाहते थे कि वो कहीं भी कुछ भी करने की गलती कर सकते हैं। उन्हें ये नहीं पता था कि इस हमले में उनका क्या हाल होगा।
संसद पर हमला करने आए इन आतंकियों का मुख्य अजेंडा संसद के मुख्य भवन में प्रवेश कर वहां मौजूद सांसदों को निशाना बनाना था, लेकिन इनके ये मनसूबे कामयाब नहीं हो सके थे। सारे आतंकियों को सुरक्षाबलों ने संसद के बाहर ही ढेर कर दिया था। जिस दिन इस हमले को अंजाम दिया गया उस वक्त संसद सत्र चल रहा था और ज़्यादातर सांसद सदन में मौजूद थे। उस दिन संसद में ताबूत घोटाले को लेकर हंगामा चल रहा था। इसकी वजह से कुछ देर के लिए संसद के दोनों ही सदनों को स्थगित करना पड़ा था। पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और और लोकसभा में विपक्ष की नेता सोनिया गांधी भी हमले से पहले अपने- अपने आवास के लिए निकल चुके थे। हालांकि, तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी संसद भवन में ही थे।
कुछ देर बाद ही पाकिस्तानी आतंकी सफेद एंबेसडर कार से तेजी से संसद भवन की तरफ आए। इस कार पर गृह मंत्रालय का स्टीकर भी लगा था। ये गाड़ी संसद के मुख्य एंट्रेंस पर लगे बैरिकेड को तोड़ती हुई करीब 11 बजकर 29 मिनट पर संसद के अंदर पहुंची। कार में से निकलते ही सभी पांच आतंकियों ने एके-47 से गोलियों की बौछार शुरू कर दी। संसद में मौजूद सांसदों और दूसरे कर्मियों को उस वक्त ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई पटाखे छोड़ रहा था, लेकिन जल्द ही सभी सांसदो को असलियत का पता चल गया था।
संसद में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत मोर्चा संभाला और सदन में एंट्री का गेट बंद कर दिया। इस कयर्तापूर्ण हमले की साजिश रचने वाले मुख्य आरोपी “अफजल गुरू” को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया। 2002 में दिल्ली हाईकोर्ट और 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने उसको फांसी की सजा सुनाई। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा उसकी दया याचिका खारिज किए जाने के बाद 9 फरवरी 2013 की सुबह अफजल गुरू को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई।
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