जन्मदिन विशेष: अकबर से जंग में रानी दुर्गावती ने खंजर क्यों उतार लिया था
आज 5 अक्टूबर है और आज का संबंध उस समय महारानी से है। जिसने मुगल शासक अकबर से लोहा लिया था। दुर्गाष्टमी के दिन पैदा होने के कारण उसका नाम रखा गया, दुर्गावती। 16वीं शताब्दी में यहां रानी दुर्गावती ने मुग़लों की विशाल सेना से लोहा लिया था और वीरगति को प्राप्त हुई थीं।
1524 में जन्मी वीरांगना महारानी दुर्गावती गोंडवाना की राजकुमारी थी। महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। जिसकी शादी राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से हुआ था।
झांसी की रानी की भांति ही शादी के कुछ वर्षों के बाद उनके पति का निधन हो गया। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था।
देश के अधिकतर हिस्सों पर मुगलों का शासन था। अकबर के कडा मानिकपुर के सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां ने रानी दुर्गावती के विरुद्ध अकबर को उकसाया था। फिर अकबर अन्य राजपूत घरानों की विधवाओं की तरह दुर्गावती को भी रनवासे की शोभा बनाना चाहता था।
लेकिन रानी ने अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इनकार कर स्वतंत्रता और अस्मिता के लिए युद्ध भूमि को चुना और अनेक बार शत्रुओं को पराजित करते हुए 1564 में बलिदान दे दिया।
बलिदान भी क्या गजब:
जब रानी दुर्गावती को आभास हुआ कि उनका जीतना असम्भव है तो उन्होंने अपने विश्वासपात्र मंत्री आधार सिंह से आग्रह किया कि वे उसकी जान ले लें ताकि उन्हें दुश्मन छु भी न पाए। लेकिन आधार ऐसा नहीं कर पाए तो उन्होंने खुद ही अपनी कटार अपने सीने में उतार ली।
दुर्गावती चंदेल वंश की थीं और कहा जाता है कि इनके वंशजों ने ही खजुराहो मंदिरों का निर्माण करवाया था और महमूद गज़नी के आगमन को भारत में रोका था।