Diwali 2021: दिवाली में इस तरीके से करे माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा, पढ़े पूजा करने का पूरा विधि विधान
त्रेता युग में भगवान विष्णु के अवतार रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म अयोध्या की नगरी में हुआ था। दिवाली सभी सनातनीयों का आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों रूप से विशेष महत्व है। सनातनीयों के लिए एक ख़ुशी का त्योहार, भावनात्मक रूप से गमगीन, आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य की जीत, स्त्री के सम्मान में एक पापी का अंत, सभी पुरुषों के लिए एक आदर्शवादी सोच, पत्नी का पति के प्रति समर्पित होना, शत्रु में उसकी अच्छाई ढूँढना, प्रजा के लिए राजा का अमूल्य प्यार अथवा अनेको ऐसी सीख, जो आज के कलियुग में भगवान राम को आदर्शवादी साबित करती है।
दिवाली का ज्योतिषीय महत्व
हिंदू धर्म में हर त्यौहार का ज्योतिष महत्व होता है। माना जाता है कि विभिन्न पर्व और त्यौहारों पर ग्रहों की दिशा और विशेष योग मानव समुदाय के लिए शुभ फलदायी होते हैं। हिंदू समाज में दिवाली का समय किसी भी कार्य के शुभारंभ और किसी वस्तु की खरीदी के लिए बेहद शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में दिवाली से ही नए साल का आरंभ हो जाता है। इस विचार के पीछे ज्योतिष महत्व है। दरअसल दीपावली के आसपास सूर्य और चंद्रमा तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में स्थित होते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्रमा की यह स्थिति शुभ और उत्तम फल देने वाली होती है। तुला एक संतुलित भाव रखने वाली राशि है। यह राशि न्याय और अपक्षपात का प्रतिनिधित्व करती है। तुला राशि के स्वामी शुक्र जो कि स्वयं सौहार्द, भाईचारे, आपसी सद्भाव और सम्मान के कारक हैं। इन गुणों की वजह से सूर्य और चंद्रमा दोनों का तुला राशि में स्थित होना एक सुखद व शुभ संयोग होता है।
आइए जानते हैं पूजन के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए
दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन से पहले घर की साफ-सफाई करें और पूरे घर में वातावरण की शुद्धि और पवित्रता के लिए गंगाजल का छिड़काव करें। साथ ही घर के द्वार पर रंगोली और दीयों की एक शृंखला बनाएं। पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या दीवार पर लक्ष्मी जी का चित्र लगाएं। चौकी के पास जल से भरा एक कलश रखें। माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति पर तिलक लगाएं और दीपक जलाकर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, हल्दी, अबीर-गुलाल आदि अर्पित करें और माता महालक्ष्मी की स्तुति करें। इसके साथ देवी सरस्वती, मां काली, भगवान विष्णु और कुबेर देव की भी विधि विधान से पूजा करें। महालक्ष्मी पूजन पूरे परिवार को एकत्रित होकर करना चाहिए। महालक्ष्मी पूजन के बाद तिजोरी, बहीखाते और व्यापारिक उपकरण की पूजा करें। पूजन के बाद श्रद्धा अनुसार ज़रुरतमंद लोगों को मिठाई और दक्षिणा दें।
दिवाली पर करें इन नियमों का पालन
कार्तिक अमावस्या यानि दीपावली के दिन प्रात:काल शरीर पर तेल की मालिश के बाद स्नान करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से धन की हानि नहीं होती है। दिवाली के दिन वृद्धजन और बच्चों को छोड़कर अन्य व्यक्तियों को भोजन नहीं करना चाहिए। शाम को महालक्ष्मी पूजन के बाद ही भोजन ग्रहण करें। दीपावली पर पूर्वजों का पूजन करें और धूप व भोग अर्पित करें। प्रदोष काल के समय हाथ में उल्का धारण कर पितरों को मार्ग दिखाएं। यहां उल्का से तात्पर्य है कि दीपक जलाकर या अन्य माध्यम से अग्नि की रोशनी में पितरों को मार्ग दिखाएं। ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। दिवाली से पहले मध्य रात्रि को स्त्री-पुरुषों को गीत, भजन और घर में उत्सव मनाना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में व्याप्त दरिद्रता दूर होती है। दीपावली में पांच दिन स्त्री प्रंसग न करें ऐसा करने से घर में दरिद्रता का वास होता है।
यह भी देखे: