Jawaharlal Nehru: भगत सिंह ने देश के पहले प्रधानमंत्री के बारे में क्या कहा था?
एक बार सऊदी अरब की यात्रा के दौरान नेहरू को रसूल-अस-सलाम कह कर पुकारा गया था। जिसका अरबी में अर्थ होता है शाँति का संदेश वाहक। लेकिन उर्दू में ये शब्द पैग़म्बर मोहम्मद के लिए इस्तेमाल होता है। नेहरू के लिए ये शब्द इस्तेमाल करने के लिए पाकिस्तान में शाह सऊद की काफ़ी आलोचना भी हुई थी।
तब जाने माने कवि रईस अमरोहवी ने एक मिसरा लिखा था जिसे कराची से छपने वाले अख़बार डॉन ने प्रकाशित भी किया था –
"जप रहे हैं माला एक हिंदू की अरब,
ब्राहमनज़ादे में शाने दिलबरी ऐसी तो हो.
हिकमते पंडित जवाहरलाल नेहरू की कसम,
मर मिटे इस्लाम जिस पर काफ़िरी ऐसी तो हो"
भगत सिंह को मानने वाले युवा नेहरू से नफरत करते हैं चलिए थोड़े इतिहास की और, जब वो कहें कि नेहरू भगत सिंह से चिढ़ते थे तो उनसे पूछियेगा कि फिर भगत सिंह ने क्यों कहा था कि नेहरू युगांतरकारी और विद्रोही हैं, और क्यों कहा कि युवाओं को नेहरू से प्रेरणा लेनी चाहिए?
किसी सोचने-समझने वाले व्यक्ति को आप यह तर्क देंगे तो वह मान जाएगा।
जब जवाहरलाल नेहरू मृत्यु से जूझ रहे थे। तब एक जाने-माने अख़बार के स्तम्भकार से कहा गया कि नेहरू कभी-भी मर सकते हैं इसलिए जल्दी से अख़बार के लिए एक ख़बर लिखो!
स्तम्भकार ने खुद को कमरे में अकेले बन्द कर लिया और नेहरू की मौत की हेडलाईन लिखने को बैठे.
पहले उन्होंने लिखा- 'नेहरू का निधन'
फिर उन्होंने बदल के लिखा- 'नेहरू मर गए'
बाद में काटकर लिखा- 'नेहरू नहीं रहे'
इसके बाद उन्होंने तीनों ही हेडलाईन्स को काट दिया और नए सिरे से लिखा-
"नेहरू ज़िंदा हैं..!"