जयंती विशेष: प्रधानमंत्री जिसने धर्मपत्नी और बच्चों से भी एक वक्त का व्रत रखवाया

 
जयंती विशेष: प्रधानमंत्री जिसने धर्मपत्नी और बच्चों से भी एक वक्त का व्रत रखवाया

हर उपमा, हर तारीफ़ से परे है बनारस। बनारस सिर्फ एक भौगोलिक टुकड़ा नही है। बनारस जीवन है, मृत्यु है या फिर इनसे भी परे हैं। महादेव की इस भूमि ने देवों, देवतुल्य मानसों को जना है, इन्हें पाला है इसके अलावा तमाम राजा, महाराजा, महापुरुष, देवपुरुष सबको राख होते हुए भी देखा है।

इस भूमि से निकले थे हमारे भारतवर्ष के महानतम व्यक्तित्व में से एक स्व लालबहादुर शास्त्री जी। गरीबी और गरीबी से जूझकर शिक्षा हासिल करने का सर्वोच्च उदाहरण और प्रेरणा है शास्त्री जी का जीवन। शास्त्रीजी का प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यकाल अत्यंत प्रभावशाली तरीके से यह भी बता जाता है कि नेता के कद, काठी, सीने की चौड़ाई से बढ़कर होता है उसका व्यक्तित्व और सोच।

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चीन से हार के तुरंत बाद जब दुनियां हमें कमजोर समझ रही होगी, पाकिस्तान को धूल चटा देना इसका प्रमाण था। उस समय देश अन्न की कमी से जूझ रहा था। शास्त्री जी प्रधानमंत्री थे। अमेरिका या अन्य देशों के सामने झुकना उन्हें मंजूर नही था और ना ही समस्या से मुंह फेर लेना। उन्हें पता था कि अनाज जुमलों में नही धरती के गर्भ में पैदा होती है और इसमें वक़्त लगेगा।

मंथन और मंत्रणा से उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि अगर देश का हर व्यक्ति सप्ताह में एक बार खाना त्याग दे तो इतना अन्न बच जाएगा कि अगले पैदावार तक देश को अनाज की कमी नही होगी। बात सिर्फ युक्ति की नही है, बात सिर्फ समाधन का नही है बात है नेतृत्व की भी। Leading by example! खुद पहली पंक्ति में खड़ा होकर नेतृत्व करने की। उन्होंने देश को आह्वाहन किया सप्ताह में एक बार अन्न त्यागने के लिए।

https://youtu.be/Ff8bJ2__xmk

उन्होंने ना सिर्फ खुद और खुद के परिवार से ऐसा करवाया बल्कि आह्वाहन करने के पहले अपनी धर्मपत्नी और बच्चों से भी एक वक्त का व्रत रखवाया यह देखने और आश्वश्त होने के लिए कि एक बार अन्न छोड़ने से किसी के स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक फर्क नही पड़ता है। फिर क्या था! देश साथ खड़ा हो गया। समस्या बौना हो गया और देश बड़ा हो गया।

हमारे देश के राजनेताओं को नेतृत्व सीखने की जरूरत है। जनता अपने नेता के कथनी और करनी में फर्क देखकर भ्रमित होती है।

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