Manmohan Singh: अस्पताल में बीमार पड़े पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा था, इतिहास मेरे प्रति मीडिया से ज्यादा उदार होगा
मनमोहन सिंह अस्पताल में भर्ती है। कल सोशल मीडिया पर उनकी मौत की खबर की अफवाह फैल गई। भारत की नई पीढ़ी मनमोहन सिंह का विरोध करते बड़े हुई है। हमारी राजनीतिक चेतना मनमोहन सिंह द्वारा लागू की गई आर्थिक नीतियों--उदारीकरण/भूमंडलीकरण--का विरोध करते हुए विकसित हुई।
जोसेफ स्टिग्लिटज पढ़े-लिखे युवा का हीरो था। वहीं वो सब उदारीकरण या मनमोहन समर्थकों पर Globalization and Its Discontents उछाल-उछाल कर मारते थे। प्रभात पटनायक, प्रभाष जोशी, प्रोफेसर आनंद कुमार जैसे लोग उस धड़े के लीडर थे जहां हमारा आना-जाना, खाना-पीना, उठना-बैठना, पढ़ना-लिखना सब था।
अब प्रियंका गांधी के सलाहकार और तब जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष संदीप ने तो मनमोहन सिंह के विरोध में अपना सिर फोड़वा लिया था।
90 से लेकर 2010-11 के ठीक पहले तक जबकि अभी अन्ना आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू ही हुई थी राजनीतिक, आर्थिक विमर्श के केंद्र में ग्लोबलाइजेशन ही था। उसके बाद अन्ना आंदोलन हुआ। उसके बाद ग्लोबलाइजेशन को हटाकर भ्रष्टाचार विमर्श के केन्द्र में विराजमान हो गया और मनमोहन की जगह श्रीमान मोदी जी..आगे क्या हुआ सबको पता है।
मनमोहन सिंह को याद करना और उनके महत्व को रेखांकित करना ज़रूरी है क्योंकि :
•मनमोहन के दौर में भारत सरकार लैटिन अमेरिकी लेफ्ट सरकारों की तरह काम कर रही थी. welfare state की अवधारणा शासन के मूल में थी।
•मनमोहन के दौर में ही सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, भोजन का अधिकार और मनरेगा जैसी शानदार योजनाएं लागू की गई।
•भारत अपनी एक तिहाई आबादी को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में कामयाब हुआ।
•लोगों का जीवन स्तर, तनख्वाह कई कई गुना बढ़ी. pay commission की सिफारिशें लागू की जाती थीं जिसका परिणाम यह हुआ कि सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह प्राइवेट सेक्टर में काम करने वालों से होड़ लेने लगी।
•आज कांग्रेस को पानी पी पी कर कोसने वाले, ज़हरीले संपादकों और पत्रकारों की तनख्वाह उसी दौरान बढ़ी।
•जिस रफ्तार से भारत आर्थिक तरक्की कर रहा था, माना जा रहा था कि अगले कुछ दशकों में भारत एशिया ही नहीं दुनिया की महाशक्ति होगा। चीन को भूल जाइए भारत की तुलना अब बांग्लादेश से की जाती है।
बात सही है कि उदारीकरण का लाभ रिस-रिस कर नीचे पहुंच रहा था लेकिन पहुंच तो रहा था। आज तो सब रिवर्स गियर में जा चुका है। मान लीजिए अगर यह सब नहीं होता तो भी मैं मनमोहन सिंह को उनकी दो भविष्य वाणियों के लिए तो याद करता ही।
मनमोहन सिंह ने कहा था :
इतिहास मेरे प्रति मीडिया से ज्यादा उदार होगा