princess sunanda: दरभंगा महाराजा ने मराठों से क्या लिया था वचन, कैसे खुला बिहार का पहला गर्ल्स स्कूल
राजकुमारी सुनंदा बंगाल में माता तपस्विनी के नाम से प्रसिद्ध हुई। कुछ लोग उन्हें गंगा बाई भी कहते हैं। राजकुमारी सुनंदा पेशवा सरदार नारायण राव की पुत्री और झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की सगी भतीजी थी।
सुनंदा बाल विधवा थी। एक साध्वी के रूप में सुनंदा ने अंग्रेजों के खिलाफ मुहिम चलाया। अग्रेज को जब सुनंदा के क्रियाकलापों की भनक लगी, तो वो सुनंदा की जासूसी करने लगे। सुनंदा साधु और साध्वी को सैनिक छाबनी में भेजने लगी। अंग्रेज चाह कर भी उन्हें सैनिकों से मिलने से नहीं रोक पा रहे थे। अब तक पता नहीं चला है कि सैनिकों को लाल गुलाब बांटने के पीछे राजकुारी सुनंदा का क्या राज था।
1857 के सैनिक विद्रोह के पीछे लाल गुलाब एक बडा कारण माना जाता है। ऐसे में अंग्रेजों के लिए सुनंदा को जिंदा या मुर्दा पकडना एक चुनौती बन गयी। अंग्रेज सुनंदा को लेकर इतने अधीर हो गये थे कि साधु और साध्वी को अंग्रेज एक एक कर मारने लगे।
कई साध्वी को पेड पर लटका कर फांसी दे दी। लाख प्रयास के बावजूद सुनंदा को अंग्रेज पकड नहीं पाये। विद्रोह असफल होने के बाद नाना साहेब के साथ अंग्रेजों से बचते हुए सुनंदा अंतत: नेपाल चली गयी। नेपाल में उन्होंने कई स्थानों पर देवालय बनाया और नेपालियों में भी अंग्रेज के खिलाफ लामबंदी शुरु की, लेकिन राणाओं ने उनकी कोई खास मदद नहीं की।
धीरे धीरे उनके आर्थिक हालात भी बद से बदतर होते गये। इसी दौरान उनकी मुलाकात दरभंगा के महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह से हुई।
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