रामपुर तिराहा कांड: गिरती लाशें, लहूलुहान लोग, औरतों के साथ बलात्कार हुआ
2 अक्टूबर जिसे पूरी दुनिया गाँधी जयंती व अहिंसा दिवस के रूप में मनाती है। गांधी मतलब शांति गांधी मतलब अहिंसा लेकिन 2 अक्टूबर के इसी दिन गांधी के भारत की एक जगह उत्तराखंड में गोलियों से आंदोलनकारी को मारा गया था और महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था।
दीपक रावत लिखते हैं कि, यह सब हो रहा था सरकार के कहने पर। सरकार के कहने पर प्रशासन और पुलिस के अधिकारी से लेकर कॉन्स्टेबल तक निर्दोष आंदोलनकारियों पर गोली चला रहे थे और रक्षक कहने वाले महिलाओं का बलात्कार कर रहे थे साड़ियाँ खींच रहे थे। वो इतने "रक्षक" थे कि महिलाएँ उनसे बचने के लिए गन्ने के खेतों में और गले तक पानी से भरे नालों में भागना ज्यादा सुरक्षित समझ रही थी। लेकिन वहाँ भी इन रक्षकों ने महिलाओं को नही छोड़ा।
मुलायम का कठोर हृदय:
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान 2 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के पास रामपुर तिराहा पर पृथक राज्य की माँग के लिए दिल्ली जा रहे राज्य आंदोलनकारियों पर तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार (मुलायम सिंह ) की पुलिस ने गोलियाँ चलाई और महिलाओं के साथ जघन्य सामूहिक बलात्कार को अंजाम दिया।
अपनी विशेष भौगोलिक परिस्थिति और अलग संस्कृति पहचान के लिए पृथक राज्य की मांग कर रहे पहाड़ के लोगों का आंदोलन मुलायम सिंह को अपने खिलाफ विद्रोह लग रहा था जिसके लिए उसने आंदोलन को खत्म करने की तमाम कोशिशें की। 2 अक्टूबर को दिल्ली में हो रहे विशाल धरने को रोकने के लिए सरकार ने जो कार्यवाही की वो किसी सरकार की नही बल्कि आतंकी गुंडों की कार्यवाही थी। जिन्हें अपनी सरकार का ख़ौफ फैलाना था।
सरकार ने उस रात आंदोलनकारियों को सबक सीखाना था। और सबक सीखाने के लिए गोलियाँ चलाई गई और महिलाओं को, जो अपनी जान बचाने के लिए गन्ने के खेतों में भागी उन्हें गन्ने के खेत में पुलिस वालों द्वारा घसीटा गया,उनके गुप्तांगों पर बंदूक से प्रहार किया गया और फिर उसके साथ दुराचार किया गया। ये सब इस घटना के बाद आयी राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट में दर्ज है।
इस घटना के मुकदमे आज भी अदालतों में चल रहे है लेकिन राज्य सरकार के द्वारा पैरवी ठीक से न करने के कारण ये मुकदमे लगातार खत्म हो रहे है। सन 2000 में राज्य बनने के बाद सत्ता में बैठने वाले दलों ने कभी उन आंदोलनकारियों को न्याय दिलाने के लिए कोई कदम नही उठाया जिनके बलिदानों के कारण वो "जो गाँव के प्रधान नही बन सकते थे राज्य बनने के बाद विधायक, मुख्यमंत्री बन गए थे"। हाँ खाना पूर्ति और रस्मअदायगी के लिए आज आंदोलनकारियों के स्मारकों पर फूल माला चढ़ा देने का "बड़ा काम" कर देंगे।
हर पार्टी जिम्मेदार:
सपा और बसपा के गठबंधन की तत्कालीन सरकार में इस घटना को अंजाम दिया गया तब उस सरकार में साझीदार मायावती ने इस कार्यवाही को अपना पूरा समर्थन मुलायम सिंह को दिया और कार्यवाही को जायज बताया। भाजपा जब उसके बाद उत्तर प्रदेश में सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने रामपुर तिराहा कांड के समय जिलाधिकारी रहे और इस घटना के सबसे बड़े आरोपियों में से एक अनन्त कुमार को मुख्य सचिव बना कर पुरुस्कृत किया।
ये घटना इस देश के राजनीतिक इतिहास की ऐसी घटना है जिसमें सरकार और सभी दल लोगों की हत्याओं में, महिलाओं के सामूहिक बलात्कार में शामिल है और न्याय दिलाना तो दूर की बात दोषियों को पुरस्कृत करने का इतिहास और वर्तमान लिख रहे है। सोचिये क्या वाकई हम लोकतंत्र में है? क्या वाकई जनता की कोई आवाज है? उन गोलियों और चीखों का कोई न्यायशास्त्र है?