पद्य पुरस्कार के वास्तविक हकदार की कहानी और तस्वीर
•एक तस्वीर मन में हजारों हिलोरें मार जाती है। खुद पढ़ ना सके,फल बेचकर स्कूल खोला ताकि गांव के बच्चों को पढ़ा सकें।कर्नाटक के फल विक्रेता हरेकाला हजब्बा को पद्मश्री मिलना अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का सम्मान है।
पैर में चप्पल नहीं
चेहरे पर भाव नहीं
मगर हाथ में पद्मश्री
कर्नाटक के फल विक्रेता हरिकाला हजब्बा के कृतित्व को नमन! हजब्बा आर्थिक रूप से वंचित होने के कारण भले स्वयं नहीं पढ़ पाए, लेकिन बाद में अपनी संकल्प शक्ति के बल पर गाँव के बच्चों के लिए स्कूल खोलकर हजारों बच्चों को शिक्षित किया। प्रतिदिन मात्र डेढ़ सौ रुपये कमाने वाले हजब्बा ने अपने सपने को साकार किया।
वो मंगलोर शहर से 40 किलोमीटर दूर स्थित हरेकला नाम के गाँव में नारंगी बेचते हैं। 1995 से ही उन्होंने स्कूल बनवाने का कार्य था। सन् 2000 में उन्होंने एक एकड़ जमीन पर अपनी सारी बचत का इस्तेमाल कर शिक्षा के इस मंदिर का निर्माण करवाया।
उनके दिल्ली आने की व्यवस्था के लिए वो स्थानीय सांसद नलिन कुमार क़तील से संपर्क में थे। उन्हें अब तक 500 संस्थाओं से सम्मान प्राप्त हो चुका है।
इन्हें वर्ष 2020 के लिए मोदी सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वास्तव में हजब्बा का सम्मान समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का सम्मान है।
•ये हैं आज की पद्मश्री। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लोक के कदमों के नीचे बिछी यह लाल कालीन आज की तस्वीर है। भारतवर्ष ने अभी तक वही ज़माना देखा है जब एक ही ख़ानदान के प्रधानमंत्रियों ने खुद को ही भारत रत्न देते रहने का कारनामा किया हुआ था बार-बार। जिस देश के प्रधानमंत्रियों ने भारत रत्न जैसे सम्मान को ‘अंधों की रेवड़ी’ बना दिया हो, वहां पद्म सम्मान लेती भारत की इस मालकिन को देखिये और आनंदित होईए।
इनका नाम तुलसी गौड़ा है। कर्नाटक से हैं और पिछले छह दशक से पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रही हैं। इन्होंने 30 हजार से अधिक पौधे लगाए हैंं। इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया
•लावारिसलाशों को उनके धर्म के अनुसार दफनाने का कीर्तिमान स्थापित करने वाले फैज़ाबाद के मोहम्मदशरीफ_चचा को मिला पद्मश्री सम्मान, हक़दार को सम्मान मिलता है तो यकीनन खुशी मिलती है।