International Year of Millets: मध्यप्रदेश में बैगा जनजाति की लाहरी बाई डिण्डौरी जिले के ग्राम सिलपदी की निवासी हैं। वे एक दशक से अधिक समय से कुटकी, सांवा, कोदो, कतकी जैसे मोटे अनाजों के संरक्षण में लगी हैं, उनके पास अनेक प्रकार के मोटे अनाजों के बीजों का भंडारण है। ग्रामीण आवास योजना से बना दो कमरों का उनका मकान, आस-पास के क्षेत्र में मोटे अनाज के बीज भंडार के रूप में जाना जाता है। लाहरी बाई का कहना है कि “हमारे यहाँ जो बीज विलुप्त हो गए थे, उन्हें बचाने के लिए हम अन्य गाँव से बीज लेकर आए और उनका उत्पादन किया, किसानों को बीज बाँटे, किसानों ने अपने खेतों के छोटे क्षेत्रों में इन्हें बोया और फसल आने पर हमने उनसे यह वापस ले लिए। विलुप्त हो चुकी कई तरह की फसलों के बीज अब हमारे पास हैं। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने ट्वीट कर डिण्डौरी जिले की लाहरी बाई द्वारा “श्री अन्न” के संरक्षण के लिए उत्साहपूर्वक किए जा रहे प्रयासों की सराहना करते हुए लिखा है कि – ‘लाहरी बाई के प्रयास अन्य लोगों को भी “श्री अन्न” के संरक्षण व उन्हें अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।’
मुफ्त में बांटती हैं बीज
इन बीजों को लहरी बाई अपने खेतों के एक हिस्से में बोती हैं. इसके बाद, इन अलग-अलग किस्म के बीजों को उनके अपने गांव के साथ-साथ अन्य 15-20 गांवों में किसानों को बांटा जाता है और वह भी निशुल्क। इसके बदले में किसान लहरीबाई को अपनी उपज का एक छोटा सा हिस्सा उपहार स्वरूप देते हैं।
साल 2023 को मिलेट ईयर किया गया घोषित
संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को मिलेट ईयर अर्थात मोटे अनाज के वर्ष के रूप में घोषित किया है। मोटे अनाज कम सिंचाई में अच्छी उपज देने वाले तथा पोषण से परिपूर्ण होते हैं। फसल चक्र को सुचारू बनाने और छोटे किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
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