UP ELECTION: BJP के लिए सिरदर्द बन रहा है जाट वोट
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों की संख्या अच्छी है। जाट वोट सिर्फ जाटों का वोट नहीं दिलवाता है बल्कि कई अन्य पिछड़ी जाति भी जाट वोट से प्रभावित होती है क्योंकि उत्तर प्रदेश में अधिकतर जाट किसान हैं।
इतने दिनों से राकेश टिकैत के नेतृत्व में हो रहे किसान आंदोलन से जाट वोट बीजेपी के विरोध में जाती नजर आ रही है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या बीजेपी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों की नाराज़गी के बावजूद आने वाले विधानसभा चुनाव में साल 2014, 2017 और 2019 जैसा प्रदर्शन कर पाएगी?
उत्तर प्रदेश की राजनीति को जानने वाले कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में जाट का नेता भले ही चौधरी चरण सिंह को जाना जाता है लेकिन जमीनी हकीकत टिकट परिवार से होकर गुजरती है। जो पहले महेंद्र सिंह टिकैत के हाथों थी अब राकेश टिकैत के हाथों है।
किसान महापंचायत का ही असर है कि परिस्थितियाँ तेज़ी से बदल रही हैं। अब तो जाट के किसान नेताओं ने खुलकर बीजेपी की आलोचना शुरू कर दी है। इधर बीजेपी जाटों की नाराज़गी से पैदा हुई चुनौती का सामना गुर्जर समुदाय के सहारे करने की कोशिश कर रही है।
2013 से पहले तक इस क्षेत्र में अजीत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल का बोलबाला था। लेकिन 2013 में हुए मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के बाद इस क्षेत्र के राजनीतिक समीकरणों में भारी बदलाव देखा गया। सपा सरकार की पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रति बेरुख़ी और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सबसे ज़्यादा फ़ायदा बीजेपी को मिला।
तभी तो बदले राजनीतिक माहौल की वजह से साल 2014 के आम चुनाव में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था। इसके बाद साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने 88 सीटों पर जीत हासिल की है। 2019 में भी इस क्षेत्र में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया। लेकिन पिछले दो सालों से जाट समुदाय धीरे-धीरे बीजेपी से दूर हटता दिख रहा है।
पश्चिमी यूपी में एक मशहूर कहावत भी है- जिसके जाट, उसी के ठाठ। यूपी में जाटों की आबादी 6 से 8% बताई जाती है, जबकि पश्चिमी यूपी में वो 17% से ज्यादा हैं। विधानसभा की बात करें तो 120 सीटें ऐसी हैं जहां जाट वोटबैंक असर रखता है। फिलहाल संसद में 24 सांसद जाट हैं जिनमें सिर्फ 4 सांसद भारतेंदु सिंह, सत्यपाल सिंह, चौधरी बाबूलाल और संजीव बालियान यूपी से हैं।