World Menstrual Hygiene Day: मासिक धर्म पर 'पैड मैन' ने तोड़ी भारतीय समाज में कई भ्रांतिया, जानें
दुनिया में हर महिला मासिक धर्म चक्र से गुजरती है, हालांकि, स्वच्छता की जरूरत को आज भी चुप्पी और उपेक्षा के साथ पूरा किया जाता है. काफी समय से इसको लेकर लोगों के बीच बातें होती रही हैं लेकिन आज भी काफी महिलाओं में इसे लेकर जागरूकता की भारी कमी है. हालांकि मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए, हर साल 28 मई को वर्ल्ड मेन्सट्रुअल हाइजीन डे 2021 के रूप में मनाया जाता है.
ऐसे में आज हम आपको ऐसे शख्श के बारे में बताने जा रहे है जिन्होनें समाज में मेन्सट्रुअल हाइजीन के प्रति कई भ्रांतियों को तोड़ते हुए महिलाओं सहित सभी देशवासियों को सेनिटरी पैड्स के बारे में जागरूक किया व बल्कि आज दुनिया में वे आज पैडमैन के नाम से भी जाने जाते है. जिनके ऊपर वर्ष 2018 में अक्षय कुमार अभिनीत फ़िल्म भी आ चुकी हैं.
अरुणाचलम मुरुगनाथम के पैडमैन बनने की शुरुआत
साल 1962 में जन्में अरुणाचलम मुरुगनाथम ने 36 साल की उम्र में 1998 में शांति नाम की लड़की से शादी की. शादी के बाद उन्हें पता चला की उनकी पत्नी पीरियड्स के दौरान सैनिटरी पैड्स नहीं बल्कि गंदे कपड़े और अखबारों का इस्तेमाल करती हैं. अरुणाचलम एक साक्षात्कार में बताते है बचपन में उनके सिर से पिता का साया उठ जाने के बाद उनके परिवार पर गरीबी का साया मंडराने लगा था. नतीजन चौदह साल की उम्र में मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा. घर के सभी सदस्य भूखे पेट न सोएं, इसलिए मुझे उसी उम्र से काम करना पड़ा. मैंने खेतों से लेकर फैक्टरियों में मजदूरी की.
शादी होने के कुछ ही समय बाद एक दिन शांति (मेरी पत्नी) अपने पीछे कुछ छिपाए हुए थी. मैंने पूछा कि क्या छिपा रही हो, तो उसने जवाब दिया, यह तुम्हारे काम की चीज नहीं है. मैं पीछे पड़ गया, तो मुझे मालूम हुआ कि वह मुझसे अपने मासिक धर्म के लिए प्रयोग किए जाने वाला कपड़ा छिपा रही थी. हालांकि उसने यह भी कहा कि उसे सैनिटरी पैड के बारे में मालूम है लेकिन घर की दूसरी जरूरतें पूरी करनी है इसलिए पैसे बचा रही हूं. मैं हैरान था कि इतनी जरूरी चीज का पैसा दूसरे मद में क्यों खर्च किया जा रहा है.
अरुणाचलम आगे कहते है जब मैंने अपनी पत्नी को पैड के देने बारे में सोचकर दुकान खरीदने पहुंचा तो सच में यह सोचकर आश्चर्यचकित था कि चंद पैसों के कच्चे माल से बने इस पैड को बहुराष्ट्रीय कंपनियां सैकड़ों गुना कीमत में बेच रही हैं. यहीं से मेरे भीतर इस ख्याल ने जन्म ले लिया कि मुझे एक ऐसा देसी पैड तैयार करना है, जो आम भारतीय महिलाओं की पहुंच में हो.
मुश्किलों भरा था मुरुगनाथम के लिए पैडमैन बनना
शुरुआत में अरुणाचलम ने कॉटन के सैनिटरी पैड्स बनाए, लेकिन उनकी पत्नी और बहनों ने उसे रिजेक्ट कर दिया. यही नहीं उन्होंने खुद पर एक्सपेरिमेंट करने से भी मना कर दिया. जिसके बाद उन्होंने गांव की दूसरी लड़कियों को टेस्ट के लिए मनाने की कोशिश भी की, लेकिन बात नहीं बनी. कई जगह कोशिश करने पर भी जब अरुणाचलम को अपने पैड्स के टेस्ट के लिए कोई नहीं मिला तब उन्होंने खुद ही पैड्स पहनकर उनका टेस्ट शुरू कर दिया. हालांकि इन्हीं दिनों कुछ दिनों बाद मुरुगनाथम के अनोखे टेस्ट से तंग आकर उनकी मां और पत्नी ने उन्हें छोड़ दिया था व मुरुगनाथम को पागल समझकर गांव वालों ने भी उनका बहिष्कार कर दिया.
हालांकि दो सालों की मेहनत के बाद उन्हें ये पता चल पाया कि पैड्स आखिर किस मैटीरियल से बनते हैं. रिसर्च शुरू करने के साढ़े चार साल बाद आखिरकार वो अपनी कोशिश में कामयाब हुए और सस्ते सैनिटरी पैड्स बनाने की तकनीक उनके हाथ लगी. आज मुरुगनाथम जयाश्री इंडस्ट्रीज के मालिक हैं, जो देशभर के गांव में सस्ते सैनिटरी पैड्स पहुंचाती हैं. करीब साढ़े पांच सालों के बाद पत्नी ने उन्हें कॉल किया. आज मुरुगनाथम के पास भारत की सबसे सस्ती सैनिटरी पैड्स की मशीन का पेटेंट है.
बतादें साल 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल द्वारा अरुणाचलम को नेशनल इनोवेशन अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका हैं.
क्या है वर्ल्ड मेन्सट्रुअल हाइजीन डे?
बतादें इस दिवस को मनाने की शुरुआत 2014 में हुई थी. इसे मनाने का मकसद यही रखा गया है कि लड़कियों/महिलाओं को पीरियड्स के उन खास दिनों में स्वच्छता और सुरक्षा के प्रति जागरूक किया जा सके. महिलाओं के पीरियड्स आमतौर पर 28 दिनों के भीतर आते हैं, ये पांच दिनों तक रहता है. इसी कारण इस खास दिवस को मनाने के लिए साल के पांचवें महीने यानि मई की 28 तारीख को चुना गया.
हर वर्ष नई थीम के मुताबिक इस वर्ष वर्ल्ड मेन्सट्रुअल हाइजीन डे की थीम एक्शन एंड इन्वेस्टमेंट इन मेन्सट्रुअल हाइजीन एंड हेल्थ यानी 'मासिक धर्म स्वच्छता और स्वास्थ्य में कार्रवाई, निवेश रखी गई है.
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