लिव-इन रिलेशनशिप कब क़ानून की नज़र में सही हैं?
लिव इन रिलेशनशिप यह शब्द आज भी गांवों और छोटे शहरों में अपने अस्तित्व में नहीं आया है। लिव-इन रिलेशनशिप, मतलब बिना शादी किए बगैर लंबे समय तक एक घर में साथ रहना। कई संस्था और विचारधारा के लोग इस कानून को निजता के आधार पर समर्थन करते हैं तो कई विचारधारा राष्ट्रवाद और संस्कृति के आधार पर इस प्रचलन का विरोध करते हैं।
हाल में ही एक मामले के सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माना कि लिव-इन रिलेशनशिप संविधान के आर्टिकल 21 के तहत दिए राइट टू लाइफ़" की श्रेणी में आता है। भारत में 2006 में लिव-इन रिलेशनशिप को क़ानूनी मान्यता मिल गई थीं। अदालत के मुताबिक कुछ लोगों की नज़र में 'अनैतिक' माने जाने के बावजूद ऐसे रिश्ते में रहना कोई 'अपराध नहीं है।
शादीशुदा कपल की तरह लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले प्रेमी जोड़ों के लिए सरकार के द्वारा कुछ कानून बनाए गए हैं। जिनका इस्तेमाल करके वे धोखाधड़ी और समाज की मान्यताओं के विरुद्ध जाने वाली सभी मर्यादाओं से बच सकते हैं। हालांकि सामाजिक वास्तविकता से इतर आजकल की युवा पीढ़ी लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के पीछे तर्क ढूंढ ही लेती है।
कानून की नजर में ,शादीशुदा होने के बावजूद लिव-इन रिलेशनशिप में रहना भी कोई गुनाह नहीं है और इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि शादीशुदा व्यक्ति ने तलाक की कार्रवाई शुरू की है या नहीं।