हिंदू धर्म में इन रीति रिवाजों से की जाती है शादी
हिंदू धर्म में शादी को एक पवित्र बंधन माना जाता है.धर्म में शादी को एक ऐसा रिश्ता माना गया है जिससे दो परिवार एक हो जाते है और उनके सुख दुख भी एक हो जाते है. हिंदू धर्म में शादी से पूर्व और उसके बाद कई प्रकार की रस्में होती है. आइए आज हम उन्हीं रस्मों के बारे में जानते है.
शादी के रीति रिवाज
- हल्दी की रस्म
इस रस्म से हिंदू धर्म की शादियों की शुरुआत होती है. हल्दी का अपटन सुहागन स्त्रियां दूल्हे और दुल्हन को लगती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हल्दी को रस्म इस लिए की जाती थी की यदि इस समारोह में कोई भी ऐसा व्यक्ति शामिल हो जो किसी रोग से ग्रस्त हो तो उसका रोग नव विवाहित जोड़े पर ना पड़े. मगर आज के समय में शादी विवाह की रस्मों को भी इंसानों ने अपने मुताबिक कर लिया है. और आज के दौर में लोग यहीं समझते है कि इससे दूल्हे और दुल्हन की त्वचा पर निखार आता है.
- मेंहदी
यह रस्म सुहागन स्त्रियों द्वारा की जाती है. इसमें वह दुल्हन को मेंहदी लगती है और कुछ जगह दूल्हे को भी लगाई जाती है. मेंहदी लगाने के बाद ऐसा माना जाता है कि मेंहदी का रंग जितना गहरा होता है नव विवाहित दंपति का जीवन भी उतना ही मधुर होता है.
- भात की रस्म
यह रस्म दूल्हे और दुल्हन के मामा के द्वारा निभाई जाती है. इस रस्म में वह अपने घर से बारात में शामिल होने वाले उनके पक्ष के सभी मेहमानों के लिए कुछ उपहार लाते हैं. इस रस्म को सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा जी की पुत्री की शादी के समय निभाया था, जिसके बाद से ही यह प्रथा चली आ रही है.
- घुड़चड़ी
यह रस्म दूल्हे के साथ की जाती है. इस रस्म में दूल्हा घर से निकलने के बाद घोड़ी पर बैठता है, घोड़ी को सभी जानवरों में चंचल व कामुक माना जाता है. इसलिए वर को घोड़ी की पीठ पर बैठाकर बारात निकाली जाती है. मान्यता है कि वर इन दोनो बातों को स्वयं पर हावी ना होने दे इसलिए उसे पीठ पर बैठाया जाता है.
- द्वार पूजा
यह रस्म वधु पक्ष की महिलाएं निभाती है. इस रस्म को तब निभाया जाता है जब दुल्हा अपनी बारात के साथ विवाह स्थल के द्वार पर पहुंचता है. इस रस्म में सभी महिलाएं पहले दूल्हे का टीका करती है और उसके बाद दूल्हे को कुछ भेट देती है. इस रस्म के अंत में दूल्हे की सास यानी दुल्हन की मां दूल्हे की नाक पकड़ती है.
6.वरमाला
वरमाला में दूल्हा व दुल्हन एक दूसरे को माला पहनाते हैं. मान्यता है कि दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे को माला पहनाकर आपसी स्वीकृति प्रदान करते हैं. विष्णु पुराण के अनुसार देवी लक्ष्मी जब समुद्र मंथन से प्रकट हुईं तो उन्होंने भगवान विष्णु को माला पहनाकर पति रूप में स्वीकार किया था. यह उसी परंपरा का प्रतीक माना जाता है.
- साथ फेरे
दूल्हा व दुल्हन का गठबंधन कर अग्नि के सामने सात फेरों के सात वचन लिए जाते हैं. पहले तीन फेरो में दुल्हन आगे रहती है बाद के चार फेरों में दूल्हा आगे रहता है. दूल्हा दुल्हन को सात वचन देता है, वहीं दुल्हन भी दूल्हे को सात वचन देती है. इसके बाद विवाह संस्कार का कार्यक्रम पूरा होता है.
- सिंदूरदान
मंडप में सात फेरों के बाद दूल्हा अपनी दुल्हन की मांग में लाल रंग का सिंदूर भरता है ताकि वह सदा सुहागन रहे व समाज में उसकी पत्नी के रूप में जानी जाए. सिंदूर लगाने की परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारण है कि जहां सिंदूर लगाते हैं ब्रह्मरंध्र होता जो सिंदूर लगाने से मन को नियंत्रित रखने में सहायक होता है.
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