Chaitra Navratri 2022: चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन कीजिए मां कालरात्रि की उपासना, जानिए कथा और पूजा विधि...

 
Chaitra Navratri 2022: चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन कीजिए मां कालरात्रि की उपासना, जानिए कथा और पूजा विधि...

Chaitra Navratri 2022: हिन्दू धर्म में नवरात्रि के नौ दिनों को उत्सव के रूप में मनाया जाता है. नवरात्रों में मां आदिशक्ति के नौ अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है.

माता के सभी स्वरूपों की अपनी एक अलग मान्यता है. और एक अलग कथा है. आइये आज हम आपको मां दुर्गा के सातवें रूप मां कालरात्रि की कथा. और पूजा विधि के बारे में बताते हैं.

https://youtu.be/kmGwCEsr65Y

मां कालरात्रि की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार रक्तबीज नाम का एक बहुत ही भयानक राक्षस था. रक्तबीज नामक राक्षस ने आमजन व देवताओं को अपनी क्रूरता से परेशान कर दिया था.

रक्तबीज को वरदान प्राप्त था कि अगर उसके रक्त की एक भी बूंद पृथ्वी पर गिरती है. तो उसी के समान एक और राक्षस बन जाएगा. देवताओं ने भगवान शिव की सहायता मांगी.

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भगवान शिव को ज्ञात था कि इस राक्षस का वध मां पार्वती कर सकती है. शिव जी ने मां पार्वती से अनुरोध किया. और माता ने स्वयं शक्ति सन्धान किया. इसी तेज से मां कालरात्रि की उत्पत्ति हुई.

मां कालरात्रि ने रक्तबीज नामक राक्षस का गला काटकर वध किया. उसका रक्त पृथ्वी पर गिरने से पहले ही माता ने अपने मुख में रक्तबीज का रक्त भर लिया.

इस तरह रक्तबीज नामक राक्षस का अंत किया. और माता पार्वती के इस सातवें स्वरूप को मां कालरात्रि के नाम से पूजा जाता है.

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मां कालरात्रि की पूजा विधि...

मां कालरात्रि की आराधना रात के समय में करने का विधान है. तांत्रिक लोग अपने मन्त्रों को सिद्ध करने के लिए पूरे वर्ष इस दिन का इंतजार करते हैं.

आपको बता दें कि इस दिन हर तरह के मन्त्र सिद्ध हो जाते हैं. नवरात्रों की सप्तमी तिथि की रात को सिद्धि प्राप्ति की रात कहा जाता है.

पूजा की शुरुआत में मां कालरात्रि को कुमकुम, लाल पुष्प, रोली लगाएं. मां की प्रतिमा पर नींबुओं की माला चढ़ाएं और तेल का दीपक जलाएं. मां कालरात्रि को लाल पुष्प अर्पित करने के बाद, गुड़ का भोग लगाएं. फिर मां कालरात्रि के मंत्रों का पाठ करें.

मां कालरात्रि कवच मन्त्र

ऊँ क्लीं मे हृदयम् पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततम् पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनाम् पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशङ्करभामिनी॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।

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