Dev uthani ekadashi 2021: इस दिन क्यों किया जाता है तुलसी विवाह, जानिए धार्मिक कारण

 
Dev uthani ekadashi 2021: इस दिन क्यों किया जाता है तुलसी विवाह, जानिए धार्मिक कारण

हिंदू धर्म में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उठनी एकादशी (Dev uthani ekadashi) के नाम से जाना जाता है. यह एकादशी सालभर पड़ने वाली 24 एकादशी में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु नींद से जागते हैं. जिसके बाद ही सारे मंगल कार्यों की शुरुआत होती है. देव उठनी एकादशी के दिन माता तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह का प्रचलन है.

माना जाता है ऐसा करने से व्यक्ति को कन्यादान के पुण्य के बराबर फल की प्राप्ति होती है. ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि क्यों देव उठनी एकादशी के दिन माता तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह किया जाता है? तो चलिए शुरू करते हैं.

धार्मिक कथा के अनुसार, एक बार एक जलंधर नाम का राक्षस हुआ करता था. जिसकी पत्नी का नाम वृंदा था. उसकी पत्नी भगवान विष्णु को बहुत मानती थी. जिस कारण उसके पति को अजेय का वरदान प्राप्त हो गया था. एक बार जब जलंधर राक्षस का युद्ध भगवान शिव से हुआ. तब उसने उन्हें भी पराजित कर दिया. जिससे उसके मन में अहंकार आ गया. फिर उसने देवलोक के हर देवता को परेशान करना शुरू कर दिया. जिससे दुखी होकर सभी देवता मिलकर भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे.

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तब भगवान विष्णु ने जलंधर को मारने की एक योजना बनाई और उसे अपने जाल में फंसाकर मार दिया. जलंधर की पत्नी वृंदा को जब यह बात पता चली. तब उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया. जिस पर समस्त देवतागणों ने वृंदा से भगवान विष्णु को दिए गए श्राप को वापिस लेने की विनती की. लेकिन भगवान विष्णु वृंदा के श्राप से काफी आहत हुए. तब भगवान विष्णु ने शालिग्राम पत्थर का रूप धारण किया. उधर, वृंदा भी अपने पति के शोक में सती हो गई. जिनकी राख से आगे चलकर तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ.

जिस पर भगवान विष्णु ने कहा कि अगले जन्म में वृंदा धरती पर तुलसी के रूप में जन्म लेंगी. जोकि मुझे सबसे अधिक प्रिय होंगी. साथ ही मुझे चढ़ाएं गए प्रसाद में तुलसी अवश्य रखी जाएगी. इसके बिना मैं प्रसाद ग्रहण नहीं करूंगा. भगवान विष्णु के इतना कहने के बाद सभी देवताओं ने वृंदा की पवित्रता बनाए रखने के लिए शालिग्राम पत्थर का विवाह तुलसी के पौधे से करा दिया.

कहते हैं कि तभी से देव उठनी एकादशी (Dev uthani ekadashi) के दिन माता तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह कराया जाता है. वर्तमान में शालिग्राम का यह पत्थर गंडकी नदी से प्राप्त होता है. जिसका माता तुलसी के साथ सम्पूर्ण श्रृंगार करके विवाह पूजन विधि विधान से संपन्न किया जाता है.

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