उत्तराखंड: भगवान शिव के इस मंदिर में नहीं होता पूजा, खास है इसके पीछे का रहस्य! जानें
उत्तराखंड जिसे लोग देवभूमि के नामे से ज्यादा जानते है. जो लोग सिर्फ यहां खूबसूरती देखने आते हैं वो बस उंचे उंचे पहाड और बड़े विशाल पेड़ों से घिरा उत्तराखंड ही देख पाते हैं, लेकिन सही मायने में देवों की भूमि ठीक अपने नाम की तरह है क्योंकि उत्तराखंड की हवाओं में देवों का वास है. यहां का छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा मंदिर अपने अंदर कई रहस्य, कई मान्यताएं समेटे हुए है. ऐसे में हमारी भी यही कोशिश रहेगी कि हम आपके सामने इन रहस्यों से पर्दा उठा पाएं.
इस फहरिस्त में आज हम उत्तराखंड के एक ऐसे मंदिर की ओर अपने कदम बढ़ा रहे हैं, जो दिखने में बेशक छोटा जरूर दिखेगा लेकिन इससे जुड़ी कहानी किसी रहस्य से कम नहीं है. इस मंदिर का नाम है एक हथिया. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से लगभग 482 किमी की दुरी पर स्थित पिथौरागढ़ में बल्तिर नामक स्थान पर स्थित है. जो की कहने को शिव मंदिर है, जहां शिव की पूजा के लिए शिवलिंग भी स्थापित किया गया है लेकिन यहां शिव की पूजा नहीं की जाती. अब आप भी ये सोच रहें होंगे की मंदिर और देवालय तो पूजा पाठ के लिए ही होते हैं. फिर इस दिव्य स्थान पर शिवलिंग की पूजा वर्जित क्यों हैं ?
कारीगर ने एक हाथ से बनाया मंदिर
दरअसल एक हथिया देवाल (Ek Hathiya Dewal temple) को अभिशप्त शिवालय भी कहा जाता है. मंदिर की ये कहानी इसे बनाने वाले कारीगर के साथ जुड़ी है. जिसने सिर्फ एक हाथ से इस मंदिर को केवल एक ही रात में तैयार कर दिया था. इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि ये मंदिर एक रात में बनकर तैयार हुआ है और जिस कारीगर ने इसे बनाया उसका सिर्फ एक ही हाथ था. यानि कारीगर ने एक रात में अपने एक हाथ से भगवान शिव का ये मंदिर तैयार कर दिया था. जिसके बाद इस मंदिर का नाम एक हथिया देवाल पड़ गया.
जिस तरह से एक हाथ के साथ एक ही रात में इस मंदिर को कारीगर ने तैयार कर लोगों को चौंका दिया था. ठीक वैसे ही इस मंदिर में दर्शन को आए लोगों का बिना पूजा किए यहां से चले जाना आश्चर्य में डालता है. क्योंकि दूर दूर से श्रद्धालु यहां शिव के दर्शनों को तो आते है लेकिन यहां आकर वो शिव की पूजा नहीं करते. मान्यताओं अनुसार जो भी भक्त इस मंदिर में पूजा करता है उसकी पूजा उस व्यक्ति के लिए कभी फलदायी नहीं होती है.
हथिया देवाल का शिवलिंग हैं दोषपूर्ण
कहा जाता है कि जिस कारीगर ने इसे एक रात में ही तैयार कर लिया था. उसने शिवलिंग की जलाधारी उल्टी दिशा में बनाई थी. जिसे सही करने के लिए काफी प्रयत्न भी किए गए. लेकिन यह सही नहीं हुआ. जिसके बाद पुजारियों का इसे लेकर कहना था कि, इस शिवलिंग की जो भी पूजा करेगा उसे पूजा का फल नहीं मिलेगा. और ये भी हो सकता है कि पूजा करने वाले व्यक्ति को ज्यादा क्षति हो क्योंकि ये शिवलिंग दोषपूर्ण है. दोषपूर्ण होने के कारण ही आज तक इस मंदिर में भगवान शिव को कभी नहीं पूजा गया. हालांकि लोग यहां दूर दूर से दर्शनों के लिए जरूर आते हैं.
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