Ganesh Chaturthi (History & Culture): सालों से बेहद उत्साह के साथ मनाया जा रहा है गणेशोत्सव, जानिए कब और किसने शुरू किया था ये पर्व?
Ganesh Chaturthi (History & Culture): हिंदू धर्म में विभिन्न प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं. जिनमें से एक प्रमुख त्योहार है गणेश चतुर्थी का त्योहार. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गणेश चतुर्थी का त्योहार गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी गणेश चतुर्थी का त्योहार समस्त भारतवर्ष में मनाया जाएगा. इस वर्ष गणेश चतुर्थी का आरंभ 30 अगस्त को होने वाला है. जिसको लेकर तैयारियां अभी से शुरु हो चुकी हैं.
लेकिन क्या आप जानते हैं गणेश चतुर्थी के पीछे का इतिहास क्या है? तो आइए जानते हैं गणेश चतुर्थी का इतिहास…
इतिहासकारों की मानें तो गणेश चतुर्थी का पावन पर्व 1630-1680 के समय के दौरान शुरू हुआ था. उस समय पर यह पर्व एक सामाजिक समारोह के रूप में मनाया जाता था. आपको बता दें छत्रपति शिवाजी के समय में गणेश जी का पूजन उनके कुलपति देवता के रूप में किया जाता था.
इसके बाद इस त्यौहार की शुरुआत बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में की थी. विशेषकर इस पर्व की शुरुआत ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों के बीच के अंतर को खत्म करने तथा एकता को स्थापित करने के लिए की गई थी. बाल गंगाधर तिलक ने उस समय ब्रिटिश शासन के दौरान इस पर्व का आयोजन बड़े स्तर पर किया था.
जिसमें बड़े पैमाने पर लोगों ने हिस्सा लिया. ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाने लगा. चूंकि बाल गंगाधर तिलक ने इस भव्य गणेश चतुर्थी का आयोजन महाराष्ट्र में किया था, इसलिए आज भी देश भर में एकमात्र महाराष्ट्र राज्य में गणेश चतुर्थी का त्योहार उच्च स्तर पर मनाया जाता है.
गणेश चतुर्थी में स्थापना और विसर्जन के पीछे का रहस्य
गणेश चतुर्थी में धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गणपति जी की मूर्ति को स्थापित किया जाता है और अनंत चतुर्दशी के दिन मूर्ति का विसर्जन किया जाता है. दरअसल महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी लेकिन उसे लिखने का कार्य गणपति जी ने पूरा किया था. जब गणपति जी महाभारत के लेखन का कार्य पूरा कर रहे थे,
तो 10 दिन तक यह काम चला था. इन दिनों में गणपति जी के शरीर का तापमान काफी बढ़ गया था. हालांकि वेदव्यास जी ने उनके तापमान को नियंत्रण रखने के लिए शरीर पर मिट्टी का लेप लगा दिया था लेकिन इसके बावजूद उनके शरीर के तापमान के चलते मिट्टी सूखकर झड़ने लगी थी.
ये भी पढ़े:- क्या आप जानते हैं गणपति का असली नाम जो माता पार्वती ने उन्हें दिया?
ऐसे में महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी को अपनी कुटिया में रखकर उनकी काफी सेवा की थी. उनके शरीर को ठंडक पहुंचाने के लिए उन्हें सरोवर में डुबोया. कहा जाता है कि तभी से गणेश चतुर्थी पर गणपति जी की मूर्ति लाने की प्रथा शुरू हो गई थी.