Ganeshotsav Celebration: गणेश चतुर्थी पर ढोल, नगाड़ों से होता है बप्पा का स्वागत, जानिए कब से शुरू हुआ था ये चलन

 
Ganeshotsav Celebration: गणेश चतुर्थी पर ढोल, नगाड़ों से होता है बप्पा का स्वागत, जानिए कब से शुरू हुआ था ये चलन

Ganeshotsav Celebration: गणेश चतुर्थी का पर्व और ढोल ताशो की जोड़ी काफी पुरानी है. गणपति जी के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाने वाला गणेश चतुर्थी का पूरे देशभर में हर्षोल्लास से मनाया जाता है. इस पर्व में महाराष्ट्र पूरी तरह से ढोल व नगाड़ों से गूंज उठता है.

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गणेश उत्सव पर सभी भक्तगण ढोल व नगाड़ों की धुन पर झूम उठते हैं. गणेश जी के भक्तों में ऊर्जा का संचार में ढोल ताशों का बेहद महत्व है.लेकिन क्या आप जानते हैं कि ढोल ताशों की शुरुआत कैसे हुई? तो आइए जानते हैं.

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Ganeshotsav Celebration: गणेश चतुर्थी पर ढोल, नगाड़ों से होता है बप्पा का स्वागत, जानिए कब से शुरू हुआ था ये चलन

गणेश उत्सव पर ढोल ताशों की शुरुआत का इतिहास

दरअसल भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर को ढोल ताशा के प्रथम जन्म स्थान के रूप में माना जाता है. पुणे की कला प्रबोधिनी ढोल ताशा पथक को इस शहर का घर बनाती हैं. इस ढोल ताशा पथक का 50 साल से भी पुराना इतिहास है.

Ganeshotsav Celebration: गणेश चतुर्थी पर ढोल, नगाड़ों से होता है बप्पा का स्वागत, जानिए कब से शुरू हुआ था ये चलन

आपको बता दें, साल 1965 में गणेश उत्सव के दौरान दंगों के कारण पुणे शहर में बैंड पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इस प्रतिबंध पर विरोध जताने के लिए पुणे में ज्ञान प्रबोधिनी के संस्थापक अप्पासाहेब पेंडसे ने ताशा बजाना शुरू किया. इसी समय मावल इलाके के युवाओं ने भी ढोल ताशा पथक से सभी का ध्यान आकर्षित करना शुरू कर दिया था.

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अप्पासाहेब पेंडसे ने इन शानदार कलाकारों के साथ मिलकर ज्ञान प्रबोधिनी के बर्ची भाला ध्वज पथक की शुरुआत की. जिसके साथ ही ढोल ताशा पथक की भी शुरुआत हो गई. इस प्रकार हर साल गणपति का त्योहार ढोल ताशों की आवाज से भरा रहता है.

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