Hindu dharm: पूजा-पाठ के दौरान क्यों बनाया जाता है स्वास्तिक चिह्न? होता है ये लाभ...
Hindu dharm: आपने अक्सर हिंदू धार्मिक पूजा-पाठ में स्वास्तिक व शुभ-लाभ चिन्हों को बना देखा होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं, आखिर इन स्वास्तिक व शुभ-लाभ चिन्हों को बनाने का उद्देश्य क्या है? और इनका पूजा-पाठ में क्या महत्व है? अगर आप जानना चाहते हैं तो पढ़ना अवश्य जारी रखें. दरअसल, सनातन धर्म में विभिन्न शुभ अवसरों तथा धार्मिक अनुष्ठानों पर स्वास्तिक, शुभ-लाभ और ॐ जैसे कई तरह के शुभ चिन्हों को बनाया जाता है. लेकिन विशेषकर गणेश जी के पूजन में स्वास्तिक व शुभ-लाभ चिन्हों का प्रयोग मुख्य तौर पर किया जाता है. निसंदेह गणपति जी हिंदू धर्म में पूजे जाने वाले प्रथम देवता हैं. इनकी पूजा करके वाले व्यक्ति को सुख समृद्धि, ज्ञान, लाभ प्राप्त होता है.
स्वास्तिक का महत्व
सभी शुभ तथा मंगलकारी कार्यों में स्वास्तिक की स्थापना अनिवार्य मानी गई है. दरअसल, गणेश पुराण के अनुसार स्वास्तिक गणेशजी का ही स्वरूप माने गए हैं. ऐसे में किसी भी मंगलकारी कार्य को करने से पूर्व गणेश जी का आवाह्न करना अति महत्वूर्ण है. विभिन्न हिंदू घरों के मुख्य द्वार पर भी स्वास्तिक का चिन्ह अंकित किया जाता है और साथ ही इसके बाईं और दाईं तरह शुभ और लाभ भी अंकित किया जाता है. यह इसका प्रतीक है कि भगवान गणपति घर पर सदा अपनी कृपा बनाए रखेंगे.
शुभ-लाभ चिन्ह का महत्व
अब जानते हैं कि पूजा में स्वास्तिक व शुभ-लाभ चिन्हों का प्रयोग का क्या महत्व हैै? दरअसल शास्त्रों के मुताबिक श्री गणेश जी का विवाह प्रजापति विश्वकर्मा जी की पुत्री रिद्धि व सिद्धि कन्याओं से हुआ. इन दोनों पत्नियों से गणेश जी के दो पुत्र उत्पन्न हुए हैं. जिसमें से सिद्धि का पुत्र क्षेम (शुभ) और ऋद्धि का पुत्र लाभ हुए. ये दोनों पुत्र एकसाथ शुभ लाभ कहलाते हैं. गणेश पुराण देखें तो शुभ और लाभ को केशं और लाभ नामों से भी जाना जाता है. चूंकि ये दोनों ही शुभता, बुद्धि, आध्यात्मिक शक्ति, लाभ से भरपूर हैं. इसलिए शुभ और लाभ का पूजा पाठ में विशेष महत्व है.
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वास्तु दोष से मिलेगा छुटकारा
स्वास्तिक व शुभ लाभ लिखने से नकारात्मक ऊर्जा का भी नाश होता है. घर में सुख व शांति का आगमन होता है. ऐसे घर पर कभी विपत्ति नहीं आती है. मुश्किल अथवा संकट के समय में भगवान की छत्र छाया बनी रहती है.