Lord Shiva Name Facts: भगवान शंकर का नाम भोलेनाथ कैसे पड़ा? जानिए इसके पीछे का कारण...

 
Lord Shiva Name Facts: भगवान शंकर का नाम भोलेनाथ कैसे पड़ा? जानिए इसके पीछे का कारण...

भगवान शिव के भक्त उन्हें यूं तो कई नामों से पुकारते हैं जिनमें से अधिकांश भक्त उन्हें भोलेनाथ या भोला शंकर बोलते है. भगवान शिव को भोलेनाथ ऐसे ही नही कहा जाता है इसके पीछे एक कहानी है.

दरअसल एक पौराणिक कथा के अनुसार एक राक्षस था जिसने अपनी घोर तपस्या से महादेव को प्रसन्न कर लिया था. शिवजी को यह पता था कि यह राक्षस है और इसको दर्शन देने से और वरदान देने से कुछ अनुचित न हो जाए. मगर शिवजी तो भोले ठहरे उन्होंने राक्षस को दर्शन दे दिए और राक्षस से मनवांछित फल मांगने को बोला. इस पर राक्षस ने भोलेनाथ से यह वरदान मांगा की वह जिस चीज को छुए तो तुरंत ही वह चीज भस्म हो जाए.

वह राक्षस कोई और नही बल्कि भस्मासुर था. इस वरदान को प्राप्त करने के बाद भस्मासुर के दिमाग में यह सुझाव आया की क्यों न इस वरदान का असर देखने के लिए सबसे पहले शिवजी पर प्रयोग करू. इससे मैं इस संसार में सबसे शक्तिशाली बन जाऊंगा. जब वह राक्षस महादेव की ओर बढ़ा तो अपनी जान बचाने के लिए शिव जी वहां से भागने लगे तभी भगवान विष्णु ने एक युक्ति निकाली जिससे भस्मासुर का अंत हो गया.

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भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया और भस्मासुर को मोहित करने लगे. राक्षस भस्मासुर मोहिनी से आर्कषित होने लगा और तभी उस राक्षस ने सबसे पहले खुद को ही छू लिया जिससे वह भस्म हो गया और इस राक्षस का अंत हो गया. तभी से भगवान शिव को भोलेनाथ के नाम से जाना जाता है.

भोलेनाथ को महाकाल भी कहा जाता है

भगवान शिव को भोलेनाथ के अलावा महाकाल भी कहा जाता है. दरअसल भगवान शिव का का न हो आरंभ है और न ही अंत है इसी वजह से उन्हें आदि अनंत कहा जाता है. शिव जी को महाकाल कहते है इस वजह से उन्हें कालों का काल कहते है.

महादेव मनुष्य के शरीर में प्राण के प्रतीक माने जाते हैं जिस व्यक्ति के अन्दर प्राण नहीं होते हैं तो उसे शव का नाम दिया गया है. भगवान भोलेनाथ का त्रिदेवों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है. शिव को मृत्युलोक का देवता माना जाता है. यह बात तो आपको पता ही होगी की भगवान शिव के तीन नेत्रों वाले हैं. इसलिए त्रिदेव कहा गया है. ब्रम्हा जी सृष्टि के रचयिता माने गए हैं और विष्णु को पालनहार माना गया है. वहीँ, भगवान शंकर संहारक हैं. यह केवल लोगों का संहार करते हैं. भगवान भोलेनाथ संहार के अधिपति होने के बावजूद भी सृजन का प्रतीक हैं.

इसके आलावा पंच तत्वों में शिव को वायु का देवता भी माना गया है. वायु जब तक शरीर में चलती है, तब तक शरीर में प्राण बने रहते हैं. लेकिन जब वायु क्रोधित होती है तो प्रलयकारी बन जाती है. जब तक वायु है, तभी तक शरीर में प्राण होते हैं. शिव अगर वायु के प्रवाह को रोक दें तो फिर वे किसी के भी प्राण ले सकते हैं, वायु के बिना किसी भी शरीर में प्राणों का संचार संभव नहीं है.

महाकाल रूप में शिव एक परिपूर्ण स्वस्थ जीवन का आशीष देते हैं और अंतकाल में शिव में विलीन होकर जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने का आश्वासन. इसी में जीवन की श्रेष्ठता है, क्योंकि भौतिक प्रगति व आध्यात्मिक उन्नति के बीच समन्वय स्थापित हो जाता है.

इसी वजह से भगवान शिव को महाकाल के नाम से पुकारा जाने लगा. और इस तरह से शिव भक्ति को महादेव के दो और नाम भोलेनाथ और महाकाल मिले.

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