Mystery of Uttarakhand temples: अद्भुत मंदिरों के अनसुलझे रहस्य

 
Mystery of Uttarakhand temples: अद्भुत मंदिरों के अनसुलझे रहस्य

Mystery of Uttarakhand temples: उत्तराखण्ड (Uttarakhand) भारत का एक उत्तरीय राज्य है जिसे "देवभूमि" या "परमेश्वर की भूमि" कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर हिन्दू देवी देवताओं के कई मन्दिर स्थापित हैं. यह भारत का 26वाॅ और हिमालय क्षेत्र का 10वाॅ राज्य है.

यह राज्य प्राकृतिक सौन्दर्य, ऊँची हिमालय और पावन नदी का अनमोल संगम है, जिस कारण यहाँ हर साल कई पर्यटक इसी अद्भुत सौन्दर्य के दर्शन के लिये आते हैं.

आइये जानते हैं कुछ ऐसी ही आध्यात्मिक जगहों के बारे में जो खुद में ही एक रहस्य हैं, जिनका बस हमारे पुराणों में वर्णन किया गया है-

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1. कैलाश पर्वत

कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22068 फुट ऊँचा है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र के तिब्बत में स्थित है जहाँ इसे ‘‘कांग रैमपोचे’’ कहा जाता है जिसका अर्थ "प्रीजियस ज्वैल" है.

कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है. इस पर्वत की ऊँचाई दुनिया के सबसे ऊँचे पर्वत एवरेस्ट से लगभग 2200 मी0 कम है फिर भी माउन्ट एवरेस्ट पर लोग 7000 से अधिक बार चढ़ाई कर चुके है लेकिन कैलाश पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया है. यह विशालकाय पिरामिट जो 100 छोटे पिरामिटों का केन्द्र है. जिसकी संरचना कम्पास के चार दिक्र बिन्दुओं के समान है और एकान्त स्थान पर स्थित है. यह पर्वत दुनिया के 4 मुख्य धर्मो- हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म का धार्मिक केन्द्र है.

इतिहास

कैलाश पर्वत पर साक्षात भगवान शंकर विराजते हैं जिसके ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्यु लोक है ।

पौराणिक कथाओं के अनुसार कैलाश पर्वत के पास कुबेर की नगरी है और यही से महाविष्णु के कर-कमलों से निकलकर गंगा पर्वत की चोटी पर गिरती है जहाँ प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं.

साथ ही कैलाश पर्वत से 4 महान नदियों का उदय होता है सतलज, सिन्धु, ब्रहमपुत्र और घाघरा, ये चारों नदियाॅ इस पूरे क्षेत्र को चार अलग-अलग हिस्सों में बाटती है जो पूरे विश्व के चार भागों को दर्शाती है.

Mystery of Uttarakhand temples: अद्भुत मंदिरों के अनसुलझे रहस्य
Image credits: Wikimedia Commons

कैलाश पर्वत का सबसे रहस्यमय बात ये है कि यहाॅ समय तेजी से बीतता है. इसके अलावा कैलाश पर्वत की चोटियों पर 2 झील स्थित हे- पहला मानसरोवर झील जो दुनिया में सबसे अधिक ऊँचाई पर स्थित शुद्ध पानी की सबसे बड़ी झील है, जो 320 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है साथ ही इस झील का आकार सूर्य के समान है. दूसरा राक्षस झील है जो दुनियाॅ में सबसे अधिक ऊँचाई पर स्थित खारे पानी की सबसे बड़ी झील है. यह झील 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है और जिसका आकार चन्द्रमा के समान है. इन्ही कारणों की वजह से कैलाश पर्वत को अद्भुत और रहस्यमय बताया जाता है.

मान्यताएं एवं विशेषताएं

कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है.

कैलाश पर्वत के बारे में तिब्बत मन्दिरों के धर्मगुरू बताते हैं कि कैलाश पर्वत के चारों ओर अद्भुत शक्ति का बहाव होता है. कहा जाता है कि आज भी कुछ तपस्वी इन शक्तियों से आध्यात्मिक गुरूओं के साथ साक्षात्कार करते हैं.

बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इस स्थान पर आकर उन्हें निर्वाण की प्राप्ति होती है. इस स्थान पर स्थित बुद्ध भगवान का आलौकिक रूप श्डेमचैक बुद्धश् इनके लिये पूज्यनीय हैं.

यह माना जाता है कि जो व्यक्ति अच्छे कर्म करता है उसे मृत्यु के बाद कैलाश में स्थान मिलता है. यहाॅ प्राचीन काल से ही अच्छी आत्माओं का वास माना जाता है.

धरती के इस केन्द्र को एक्सिस मुंडी माना जाता है जहाॅ पर आकाश धरती से आकर मिलता है.

वैसे तो कैलाश पर्वत पर चढ़ाई पर प्रतिबन्ध है लेकिन माना जाता है कि 11वीं सदी में एक तिब्बतीय बौद्ध योगी मिलरिपा ने इस पर चढ़ाई की थी.

कैलाश मानसरोवर झील के क्षेत्र में जाने पर कानों में डमरू और ऊँ की ध्वनि सुनाई देती है, इस ध्वनि का श्रोत आज तक कोई नहीं जान पाया है. इतना ही नहीं पर्वत के ऊपर आसमान में कई बार विशेष प्रकार से दिव्य रोशनी देखे जाने की बात कही गई हैै.

2. हाटकालिका मंदिर

हाट कालिका मंदिर पिथौरागढ़ से करीब 77 किलोमीटर की दूरी पर गंगोलीहाट नामक स्थान पर स्थित है और मंदिर के चारों तरफ से देवदार वृक्षों से घिरा हुआ एक दर्शनीय स्थल है भगवती माँ दुर्गा का स्वरूप दस महाशक्ति में एक महाकाली है जिनके काले और डरावने रूप की उत्पत्ति राक्षसों और दैत्यों का नाश करने के लिए हुई है. यह एक शक्ति का रूवरूप जिन से काल भी भय खाता है.

इतिहास

महाकाली के इस भव्य मंदिर के निर्माण में कई कथाएं प्रचलित है. जिनका उल्लेख स्कन्द पुराण के मानस खंड में विस्तार पूर्वक किया गया है.

तो आइये पड़ते है हाटकालिका मंदिर के कुछ प्रचलित कथाएं-

प्रााचीन समय में एक सूम्या नामक दैत्य का प्रकोप था. जो कि इतना ताकतवर था कि उसने देवताओं को भी परास्त कर दिया था. सूम्या से हारने के बाद सभाी देवता शैल पर्वत पर आए और इस दैत्य के पापो से मुक्ति हेतु देवी की स्तुति करने लगे. देवताओं की भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने महाकाली का रूप धारण किया और देवताओं को सूम्या दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाई उसके बाद सभी देवताओं ने मां काली की इसी स्थान पर पूजा की और तब से यह स्थान महाकाली के शक्तिपीठ के रूप में जाना जाने लगा. यह भी कहा जाता है कि महाकाली ने महिषासुर रक्तबीज जैसे राक्षसों का अंत भी इसी स्थान पर किया थां.

गुरू शंकराचार्य जी जब कुमाऊं क्षेत्र के भ्रमण पर आए तो लोगों ने उन्हें यहां देवी के होने वाले प्र्रकोप के बारे में बताया. तब यहां देवी रात को महादेव का नाम पुकारती थी और जो भी उस आवाज को सुनता उसकी मृत्यु हो जाती थी इसलिए आदि गुरू शंकराचार्य जी ने अपने तंत्र मंत्र और जाप से इस स्थान को एक पत्थर कीलित किया तथा यहां देवी की स्थापना की और इस स्थान को उन्होंने महाकाली का शक्तिपीठ भी कहा.

हाट कालिका कुमाऊं रेजिमेंट की आराध्य देवी मानी जाती है. इसी कारण कुमाऊं रेजिमेंट की स्तुति भी कालिका माता की जय और बजरंग बली की जय है. 1971 के यु़द्ध में जब भारत ने पाकिस्तान को हराया था. 16 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के आगे आत्मसर्पण कर दिया था इसलिए युद्ध के बाद सूबेदार शेर सिंह के नेतृत्व मेेें एक सैन्य टुकड़ी इस मंदिर में आई और यहां मां काली की मूर्ति स्थापित की. इसके बाद 1994 में कुमाऊं रेजिमेंट के द्वारा ही इस मंदिर में एक विशाल मूर्ति स्थापित की गई.

मान्यताएं एवं विशेषताएं

इस मंदिर में काफी समय से एक अनोखी प्रथा चली आ रही है. यहां के पुजारी शाम के समय मंदिर में ही एक बिस्तर लगाते है और कहा जाता है कि सुबह जब पुजारी उस मंदिर के कपाट खोलते हैं तो बिस्तर पर सिलवटें पड़ी रहती है जिसे देखने पर ऐसा लगता है जैसे कि कोई यहां रात को सोया हो. माना जाता है कि स्वयं महाकाली रात्रि में इस स्थान पर विश्राम करती हैं.

यह भी कहा जाता है कि दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जब भारतीय सेना का जहाज डूब रहा था. तब सैन्य अधिकारियों ने सभी सैनिकों को अपनी आराध्य देवी मां को याद करने को कहा. उसमें ज्यादातर कुमाऊं रेजिमेंट के थे, इसलिए वो अपनी आराध्य देवी मां काली का जयकारा लगाने लगे फिर कुछ टाइम बाद वो जहाज खुद ब खुद किनारे लग गया और सभी की जान बच गयी. आज भी जब कुमाऊं रेेजिमेंट के जवान जब भी युद्ध के लिए निकलते हैं तो इस मंदिर में माथा जरूर टेक कर जाते हैं.

हाट के मंदिर में आकर जो भी सच्चे मन से मां की आराधना करता है उसकी हर मनाकामना पूरी होती है. इसी कारण भक्त यहां आकर मंदिर में ही चुनरी बांधकर महाकाली से अपने मन की बात कहते हैं और जब मनोकामना पूरी हो जाती है तब दोबारा आकर घंटी चढ़ाने की भी परंपरा इस मंदिर में है.

3. लाटू देवता मन्दिर

लाटू मन्दिर उत्तराखण्ड (Uttarakhand) के चमोली जिले में देवाल नामक ब्लाॅक में वाण नामक स्थान पर स्थित है यह मन्दिर समुद्र सतह से 8500 फीट की ऊँचाई पर विशाल देवदार वृक्ष के नीचे स्थित है.

इतिहास


दसअसल वाण गाॅव प्रत्येक 12 वर्षो पर होने वाली उत्तराखण्ड (Uttarakhand) की सबसे लम्बी पैदल यात्रा श्री नन्दा देवी राजजात यात्रा का 12वाॅ पड़ाव है यहाॅ लाटू देवता वाण से लेकर हेमकुण्ड तक अपनी बहन नन्दा देवी की अगवानी करते हैं, इसलिए लाटू देवता को उत्तराखण्ड की आराध्या नन्दा देवी के धर्म भाई कहा जाता है.

स्थानीय लोगों का मानना है कि इस मंदिर में नागराज अपनी अद्भुत मणि के साथ रहते हैं. जिसे देखना आम लोगों के बस की बात नहीं है. पुजारी भी नागराज के महान रूप को देखकर डर न जाएं इसलिए वे अपने आँ पर पट्टी बांधते हैं. उनका यह भी मानना है कि मणि की तेज रोशनी इंसान को अंधा बना देती है. न तो पुजारी के मुंह की गंध देवता तक और न ही नागराज की विषैली गंध पुजारी के नाक तक पहुंचनी चाहिए इसलिए वे नाक मुंह पर पट्टी लगाते हैं.

मान्यताएं एवं विशेषताए

लाटू देवता के विषय में ऐसी कथा है कि जब देवी पार्वती के साथ भगवान शिव का विवाह हुआ तब देवी पार्वती जिसे नन्दादेवी नाम से भी जाना जाता है. इन्हें विदा करने के लिये सभी भाई कैलाश की ओर चल पडे़ इसमें चचेरे भाई लाटू भी शामिल थे. मार्ग में लाटू को इतनी प्यास लगी कि पानी के लिये इधर-उधर भटकने लगे इस बीच लाटू देवता को एक घर दिखा और पानी की तलाश में घर के अन्दर पहुॅच गये घर का मालिक बुजुर्ग था. बुर्जुग ने लाटू देवता से कहा कि कोने में मटका है पानी पीलो.

घर के अन्दर काॅच के घडे़ में मदिरा और मिट्टी के दूसरे घडे़ में पानी था, लेकिन मदिरा इतना स्वच्छ रहता है कि लाटू उसे साफ पानी समझकर पी लेता है. जब लाटू को पता चलता है कि उसमें पानी की जगह शराब पी ली है तो कुछ ही देर में मदिरा अपना असर दिखाना शुरू कर देती है और लाटू देवता नशे में उत्पात मचाने लगते हैं. इसे देखकर देवी पार्वती क्रोधित हो जाती है और लाटू को कैद में डाल देती है.

4. पाताल भुवनेश्वर

पाताल भुवनेश्वर जिसका अर्थ है कि भगवान शिव के उप-क्षेत्रीय तीर्थस्थान. यह गुफा पिथौरागढ़ से लगभग 91 किलोमीटर दूर और गंगोलीहाट से 14 किलोमीटर उत्तर में स्थित है. इस मंदिर में प्रवेश करने से पहले मेजर समीर कटवाल के मेमोरियल से होकर गुजरना पड़ता है. कुछ दूर चलने के बाद एक ग्रिल गेट मिलता है, जहां से पाताल भुवनेश्वर की शुरूआत होती है. प्रवेश द्वार से 160 मीटर लम्बी और 90 फीट गहरी होने के बाबजूद यहां घुटन नहीं होती बल्कि शान्ति मिलती है.

म्ंदिर का रास्ता एक सुरंग के माध्यम से होता है. इस गुफा में जाने के लिए प्रवेश द्वार से लोहे की जंजीरों का सहारा लेना पड़ता है क्योंकि गुफा में जो पत्थर है वह बहुत ही चिकने है और गुफा की दीवारों से हमेशा हल्का पानी आता रहता है, इसलिए गुफा का रास्ता चिकना रहता है।

यह मंदिर रहस्य और सुदरता का बेजोड़ मेल है. इतना ही नहीं इस मंदिर में प्रकृति द्वारा निर्मित और भी कलाकृति मौजूद हैं. इसकी सबसे विशिष्ट खूबी यह है कि ये गुफा एक प्राकृतिक निर्माण है.

इतिहास

पताल भुवनेश्वर गुफा एक ऐसी गुफा है जहाॅ पाॅचों पांडवों और चारों धामों के दर्शन एक साथ होते है. साथ ही यहाँ 33 कोटि देवी-देवताओं के दर्शन करने का भी सौभाग्य मिलता है. 103वें अध्याय के श्लोक 21 से 27 के अनुसार ये भूतल का सबसे पावन क्षेत्र है. इसका पूजन करने से अश्वमेघ यज्ञ से हजार गुना फल मिलता है अतः उससे बढ़कर कोई दूसरा स्थान नहीं है. श्लोक 30से 34 के अनुसार इस गुफा के समीप जाने वाला व्यक्ति एक सौ कुलों का उद्धार कर शिव जी से पूर्ण मिलन का वरदान प्राप्त करता है.

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर में चार द्वार हैं जो रणद्वार, पापद्वार, धर्मद्वार और मोक्षद्वार के नाम से जाने जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि, रावण की मृत्यु के बाद पापद्वार बंद हो गया था. इसके साथ कुरूक्षेत्र की लड़ाई के बाद रणद्वार को भी बंद कर दिया गया था. यहां से आगे चलने पर चमकीले पत्थर भगवान शिव जी के जटाओं को दर्शाते हैं.

मानसखंड और स्कंद पुराणों में लिखा है कि त्रेता युग में सबसे पहले राजा ऋतूपूर्ण ने यह गुफा देखी थी, द्वापरयुग मे पाण्डवों ने यहा शिवजी भगवान के साथ चैपाड़ खेला था और कलयुग में जगत गुरू शंकराचार्य ने 722ई0 के आसपास इस गुफा को ढूंढा और उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया.

मान्यताएं एवं विशेषताए

कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने क्रोध में गणेशजी का सिर धड से अलग कर दिया था. बाद में माता पार्वतीजी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया गया था. लेकिन जो मस्तक शरीर से अलग किया गया वह मस्तक भगवान शिवजी ने पाताल भुवनेश्वर गुफा में रखा है, जिसके प्रतिमा के ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला ब्रहम कमल है, जहां से पानी की बूंदे टपकती हैं.

गुफा के अन्दर एक हवन कुण्ड भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि उत्तरा के पुत्र राज परीक्ष्ति को मिले श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उनके पुत्र जन्मेजय ने इसी कुण्ड में सभी नागों को जला डाला लेकिन तक्षक नाम का एक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतार दिया, इसलिए इस गुफा में नाग की आकृति भी चट्टान में नजर आती है. यह भी माना जाता है, कि अधिशेष ने अपने सिर के ऊपर पूरी दुनिया को संभाल कर रखा है.

थोड़ा आगे चलने पर इस गुफा के चट्टान एक ऐसी कलाकृति बनाते हैं जो दिखने में 100 पैरों वाला ऐरावत हाथी लगता है. जिसका वर्णन स्कंद पुराण के मानस खंड में किया गया है. कलियुग के खंभे के बारे में यहां के पुजारी कहते हैं कि सात करोड़ सालों में यह पिंड 1 इंच बढ़ता है और जिस दिन यह पत्थर दीवार से टकरा जाएगा तो उसी दिन कलयुग का अंत हो जाएगा. गुफा में ही काल भैरव की जीभ के दर्शन होते हैं. ऐसा माना जाता है कि, जो भी मनुष्य काल भैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.

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