Pitru Paksh 2022: कुरुक्षेत्र के जिस मंदिर में पांडवों ने किया था पिंड दान, वहां जाए बिना अधूरी मानी जाती है गया की यात्रा
Pitru Paksh 2022: जैसा की विदित है कि गणेश चतुर्थी की समाप्ति के पश्चात् पितृ पक्ष का आरंभ हो चुका है. पितृ पक्ष के दिनों में हर व्यक्ति अपने पूर्वजों का पिंडदान और श्राद्ध करके उनकी आत्मा को शांति दिलाता है. पितृपक्ष के दिनों में पूर्वजों और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध इत्यादि किया जाता है. इस बार पितृपक्ष 25 सितंबर तक चलेंगे. ऐसे में पितृ पक्ष के दिन धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माने गए हैं, इन दिनों दान पुण्य और कर्मकांड का विशेष महत्व है.
हमारे आज के इस लेख में आपको एक ऐसे मंदिर के विषय में बताने वाले हैं, जहां महाभारत काल में पांडवों ने पिंड दान करके पुण्य कमाया था. मान्यता है कि इस स्थान के दर्शन किए बिना व्यक्ति को पूर्वजों के लिए किए गए श्राद्ध का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता. तो चलिए जानते हैं…
कहां है वह मंदिर जहां पितृ पक्ष में गया से पहले जाना है जरूरी
संपूर्ण भारत वर्ष में केवल एक ही मंदिर ऐसा है, जहां पांडवों ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान श्राद्ध किया था. यह मंदिर कुरुक्षेत्र के पास पिहोवा नामक स्थान पर स्थित है, जोकि पृथुदक तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में पांडवों ने महाभारत का युद्ध जीतने के पश्चात अपने सभी संबंधियों का श्राद्ध और पिंडदान इसी स्थान पर किया था.
जिस बात का वर्णन हमें श्रीमद्भागवत महापुराण में मिलता है.यही कारण है कि ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति श्राद्ध करने गया यानी भगवान विष्णु के नगर बिहार में जाते हैं, वह पहले इसी स्थान पर आकर पृथुदक बेदी की पूजा अर्चना करते हैं, उसके बाद ही गया की यात्रा आरंभ करते हैं. और जो लोग गया जाकर पिंडदान करते हैं, और पिहोवा की धरती पर नहीं पहुंचते,
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तो उन लोगों को गया में पृथुदक बेदी की पूजा आराधना करनी पड़ती है, तब जाकर उनका पिंड दान मान्य होता है. ऐसे में भी आप भी अपने पूर्वजों की शांति के लिए पिंडदान करने की सोच रहे हैं, तो कुरुक्षेत्र में मौजूद पिहोवा नामक जगह पर इस मंदिर के दर्शन अवश्य करें.