Shani Jayanti 2022: तो क्या काले रंग की वजह से शनिदेव को सूर्यदेव ने नहीं माना था अपना पुत्र? जानिए…
Shani jayanti 2022: हर वर्ष की तरह इस साल भी ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को शनि जयंती के तौर पर मनाया जाएगा. शनि जयंती के दिन न्याय के देवता शनि देव का जन्म हुआ था. जिस कारण इनके जन्मदिवस को शनि जयंती के तौर पर मनाते हैं. शनि देव हिंदू धर्म के एक लोकप्रिय देवता है, जिनकी कुदृष्टि से बचने के लिए हर कोई शनि देव को खुश करने का उपाय करता है. आपने अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि फलां व्यक्ति पर शनि देव की साढ़े साती चल रही है. जिससे तात्पर्य है शनि देव की बुरी नजर आपके ऊपर है, ऐसे में यदि आपके ऊपर पर शनि का प्रकोप है,
तो इस शनि जयंती आप शनि देव को प्रसन्न करने से जुड़े कई सारे उपाय कर सकते हैं. जिनके ऊपर हमने अलग से कई सारे लेख लिखें हैं, लेकिन हमारे आज के इस लेख में हम आपको शनि देव के जन्म के बारे में बताएंगे कि आखिर न्याय के देवता शनि देव का जन्म कैसे हुआ. इसके पीछे एक धार्मिक कहानी प्रचलित है. तो चलिए जानते हैं…
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कैसे हुआ था शनि देव का जन्म?
हिंदू धर्म के पवित्र स्कंदपुराण में वर्णित है कि शनि देव ऋषि कश्यप के कुल से संबंध रखते हैं. जिनका जन्म धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाराष्ट्र के शिंगणापुर जिले में ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को हुआ था. जिनके पिता का नाम सूर्य देव और माता का नाम सुवर्णा है. मान्यता है कि जब सूर्य देव ने विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से विवाह किया था, तब उन्हें मनु और यम नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई थी.
लेकिन एक बार जब उनकी पत्नी संज्ञा उनके तेज से काफी परेशान हो गई, तब वह अपनी छाया सुवर्णा को सूयर्देव के समीप छोड़ आई, और फिर वह अपने पिता के घर चली आई. हालांकि संज्ञा के इस व्यवहार से उनके पिता विश्वकर्मा काफी नाराज हुए, और उन्होंने संज्ञा को वापिस लौट जाने को कह दिया. लेकिन संज्ञा वापिस लौटकर वन में चली गई और वहां तपस्या करने लगी.
जबकि इधर, सूर्य देव को सुवर्णा से तीन पुत्र मनु, शनि औऱ भद्रा की प्राप्ति हुई. लेकिन शनि देव जब सुवर्णा के गर्भ में थे, तब सुवर्णा भगवान शिव की आराधना किया करती थीं. जिस दौरान वह काफी दिनों तक भूखी-प्यासी शिव जी की आराधना करने में मग्न हो गई. जिसके चलते गर्भ में पल रहे शनि देव का रंग काला पड़ गया. यही कारण है कि सूर्य़ देव ने उन्हें अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया था.
साथ ही अपनी पत्नी सुवर्णा के चरित्र पर भी शक किया था. कहते हैं कि तभी से शनिदेव अपने पिता से क्रोधित हो गए. औऱ उन्हें काला रंग अति प्रिय हो गया. यही कारण है कि काला रंग उपेक्षित होने के बाद भी शनिदेव को काली वस्तुओं के रूप में अर्पित किया जाता है. कहा जाता है कि जिसके बाद अपने पिता से रूठकर शनि देव शिव जी की आराधना में लग गए
और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर ही शिव जी ने उन्हें ये वरदान दिया था. कि आम आदमी से लेकर खास तक, यहां तक कि देवता तक शनि की बुरी छाया से घबराएंगे, और शनि देव व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर दंड और फल देंगे. तभी से हिंदू धर्म में शनिदेव को न्याय प्रिय देवता के तौर पर पूजा जाता है और उनकी बुरी दृष्टि से बचने के उपाय किए जाते हैं.