Shanivar ki katha: शनिदेव हर लेंगे सारे दु:ख, शनिवार के दिन कर लें इस कथा का पाठ

 
Shanivar ki katha: शनिदेव हर लेंगे सारे दु:ख, शनिवार के दिन कर लें इस कथा का पाठ

Shanivar ki katha: हिंदू धर्म में शनिवार का दिन न्याय प्रिय देवता की उपासना का दिन माना गया है. ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति शनिवार के दिन शनि देव की विधि-विधान से पूजा अर्चना करता है. उस पर शनिदेव अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं.

वैसे आप भी शनिदेव का आशीर्वाद अपने जीवन में बनाए रखना चाहते हैं, तो शनिवार के दिन शनि देव की आराधना के दौरान शनिवार की कथा अवश्य पढ़ें. जिसे पढ़ने मात्र से आपके जीवन में शनिदेव की कृपा आपको मिलने लगती है, और आपको हर कार्य में शनिदेव (Shanivar ki katha) का साथ मिलने लगता है. तो चलिए जानते हैं…

यहां पढ़ें शनिवार (Shanivar ki katha) की कथा

एक बार जब सभी ग्रहों के बीच एक दूसरे से श्रेष्ठ होने की होड़ मच गई थी. इस दौरान सभी ग्रह मिलकर देवराज इंद्र के पास गए. देवराज इंद्र ने सभी ग्रहों को धरती के राजा विक्रमादित्य के पास भेजा. इसके बाद विक्रमादित्य ने उन सभी ग्रहों की समस्या का समाधान करने के लिए 9 धातुओं से सिंहासन बनवाएं.

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इस दौरान उन्होंने सारे नौ ग्रहों से कहा कि जो भी इन सिंहासनों पर सबसे बाद में बैठेगा, वह सबसे छोटा ग्रह माना जाएगा. लोहे का सिंहासन जोकि सबसे अंतिम में मौजूद था. उस पर शनिदेव सबसे अंत में विराजें. जिस पर शनिदेव (Shanivar ki katha) ने राजा विक्रमादित्य से कहा कि तुम जानते हो कि दशा ढाई साल से लेकर 7 साल तक रहती है, इसलिए तुमने सबसे अंतिम जगह मुझे दी.

ऐसे में भगवान शनिदेव जब राजा विक्रमादित्य से क्रोधित हो गए, तब शनिदेव की महादशा राजा विक्रमादित्य पर शुरू हो गई. तब से राजा विक्रमादित्य के साथ सब कुछ बुरा होने लगा. राजा विक्रमादित्य को भूख प्यास और गरीबी ने घेर लिया.

इतना ही नहीं, एक बार जब राजा विक्रमादित्य घुड़सवारी कर रहे थे तब उनका घोड़ा उन्हें लेकर जंगल में भाग गया. जंगल में राजा विक्रमादित्य का जीना जब मुहाल हो गया. तब एक ग्वाले ने उन्हें अपनी अंगूठी दी और कहा कि तुम उज्जैन नगर की ओर चले जाओ. वहां जाकर राजा विक्रमादित्य ने अपना नाम वीका बताया.

उज्जैन नगर में राजा विक्रमादित्य एक सेठ के यहां रहने लगे, जहां एक बार सेठ ने राजा विक्रमादित्य पर उनका हार चुराने का आरोप लगाया और उन्हें कोतवाल के हाथों सौंप दिया. कोतवाल ने राजा विक्रमादित्य के हाथ पैर काट दिए. और राजा के आदेश पर उन्हें नगर से बाहर निकाल दिया गया.

इसके बाद राजा विक्रमादित्य एक तेली के साथ नगर से जब जा रहे थे, तब उन्होंने मल्हार गाना शुरू कर दिया. उस दौरान वर्षा ऋतु का समय था और राजा विक्रमादित्य के ऊपर से शनि की महादशा भी धीरे-धीरे समाप्त हो रही थी. ऐसे में जब राजा की बेटी ने राजा विक्रमादित्य की आवाज सुनी, तब उसने उनसे विवाह करने की जगह ठान ली.

उधर वीका यानी राजा विक्रमादित्य को शनि देव ने सपने में दर्शन दिए और कहा कि तुम्हें मुझे समस्त ग्रहों से छोटा समझा. इसी के परिणामस्वरूप तुम्हें अपने जीवन में इन दुखों का सामना करना पड़ा. कहा जाता है कि तब विक्रमादित्य ने शनिदेव (Shanivar ki katha) से क्षमा मांगी और शनिदेव ने उन्हें उनके हाथ पैर वापस लौटा दिए.

तभी से शनिवार के दिन शनि देव की यह कथा पढ़ी जाती है. क्योंकि जब शनि की साढ़ेसाती राजा विक्रमादित्य के ऊपर से समाप्त हुई, तब राजा विक्रमादित्य का अच्छा वक्त शुरू हुआ और वह अपनी पत्नियों अपने राज्य वापस आ गए, जहां उन्होंने नियमित तौर पर शनिदेव की कथा (Shanivar ki katha) का पाठ करना आरंभ कर दिया.

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