Shiv ka jaap: रोजाना करें शिव के 108 नामों का ध्यान, मिलेगा हर समस्या का समाधान

 
Shiv ka jaap: रोजाना करें शिव के 108 नामों का ध्यान, मिलेगा हर समस्या का समाधान

Shiv ka jaap: देवों के देव महादेव इस सृष्टि के पालनहार है. समस्त देवताओं के देव कहलाने वाले भगवान शिव अपने भक्तों के हर संकट को दूर करते हैं. शिव अनादि अनंत और अलौकिक हैं.

यही कारण है कि इस दुनिया में भगवान शिव की अपार शक्ति को सदैव मान्यता दी जाती है. भगवान शिव की आराधना करने वाले भक्त की हर एक मनोकामना पूर्ण होती है.

लेकिन उसके लिए मन में सच्ची श्रद्धा व भावना का होना आवश्यक है. भगवान शिव की कई कथाएं प्रचलित हैं. जो उनके अस्तित्व और शक्ति का परिचायक हैं. इसी प्रकार भगवान शिव के 108 नामों का जाप भी बेहद लाभकारी है.

Shiv ka jaap: रोजाना करें शिव के 108 नामों का ध्यान, मिलेगा हर समस्या का समाधान
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भगवान शिव के 108 नामों का रहस्य

पौराणिक कथा के अनुसार, क्षीरसागर में योग निद्रा में विराजमान भगवान विष्णु की नाभि से एक कमलयुक्त परमपिता परमेश्वर ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई. ब्रह्मा जी भगवान विष्णु को योग निद्रा से जगाने का प्रयास करने लगे. जब एक बार भगवान शिव एक ज्योतिर्लिंग के रूप में ब्रह्मा जी के सामने पधारे तो ब्रह्मा जी उन्हें प्रणाम करना भूल गए.

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ऐसे में जब भगवान विष्णु जाग गए हैं और उन्हें प्रणाम किया, तब ब्रह्मा जी उनके अलौकिक अवतार से अवगत हुए. अपनी भूल को स्वीकार करते हुए ब्रह्मा जी ने भगवान शिव जी से क्षमा मांगी. भगवान शिव ने ब्रम्हा जी को माफ करते हुए उन्हें सृष्टि के रचना का कार्यभार दिया. साथ ही विष्णु जी को संसार के पालन हर्ता का कार्यभार दिया गया.

Shiv ka jaap: रोजाना करें शिव के 108 नामों का ध्यान, मिलेगा हर समस्या का समाधान
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लेकिन संसार के नाश का कार्य भोलेनाथ के हाथों में छोड़ दिया. इस कार्यभार से बचने के लिए ब्रह्मा जी ने एक वरदान प्राप्त किया कि ब्रह्मा जी के शरीर से भगवान शिव बालक के रूप में उत्पन्न होंगे. फलस्वरूप ऐसा ही हुआ और जन्म लेते ही वह खूब जोर से रोने लगे. ब्रह्मा जी ने उनसे रोने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका कोई नाम नहीं रखा गया है.

फिर ब्रह्मा जी ने बाल रूप शिव जी को 'रुद्र' नाम दिया. लेकिन उनका रोना बंद नहीं हुआ फिर इसके अलावा ब्रह्मदेव ने उन्हें शर्व, भव, उग्र, पशुपति, ईशान और महादेव नाम दिया, लेकिन फिर भी उनका रुदन नहीं रुका. तब ब्रह्मदेव ने बाल रूप शिव जी की 108 नामों से स्तुति की तब वह शांत हुए.

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तब से भगवान शिव के 108 नामों का जाप अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. आपको बता दें, शिव तांडव स्तोत्र में शिव जी के इन 108 नामों का पूरा उल्लेख मिलता है.

Shiv ka jaap: रोजाना करें शिव के 108 नामों का ध्यान, मिलेगा हर समस्या का समाधान
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भगवान शिव के 108 नाम और मंत्र

रुद्र: ऊं रुद्राय नमः
शर्व: ऊं शर्वाय नमः
भव: ऊं भवाय नमः
उग्र: ऊं उग्राय नमः
भीम: ऊं भीमाय नमः
पशुपति: ऊं पशुपतये नमः
ईशान: ऊं ईशानाय नमः
महादेव: ऊं महादेवाय नमः
शिव: ऊं शिवाय नमः
महेश्वर: ऊं महेश्वराय नमः
शम्भू: ऊं शंभवे नमः
पिनाकि: ऊं पिनाकिने नमः
शशिशेखर: ऊं शशिशेखराय नमः
वामदेव: ऊं वामदेवाय नमः
विरूपाक्ष: ऊं विरूपाक्षाय नमः
कपर्दी: ऊं कपर्दिने नमः
नीललोहित: ऊं नीललोहिताय नमः
शंकर: ऊं शंकराय नमः
शूलपाणि: ऊं शूलपाणये नमः
खटवांगी: ऊं खट्वांगिने नमः
विष्णुवल्लभ: ऊं विष्णुवल्लभाय नमः
शिपिविष्ट: ऊं शिपिविष्टाय नमः
अंबिकानाथ: ऊं अंबिकानाथाय नमः
श्रीकण्ठ: ऊं श्रीकण्ठाय नमः
भक्तवत्सल: ऊं भक्तवत्सलाय नमः
त्रिलोकेश: ऊं त्रिलोकेशाय नमः
शितिकण्ठ: ऊं शितिकण्ठाय नमः
शिवाप्रिय: ऊं शिवा प्रियाय नमः
कपाली: ऊं कपालिने नमः
कामारी: ऊं कामारये नमः
अंधकारसुरसूदन: ऊं अन्धकासुरसूदनाय नमः
गंगाधर: ऊं गंगाधराय नमः
ललाटाक्ष: ऊं ललाटाक्षाय नमः
कालकाल: ऊं कालकालाय नमः
कृपानिधि: ऊं कृपानिधये नमः
परशुहस्त: ऊं परशुहस्ताय नमः
मृगपाणि: ऊं मृगपाणये नमः
जटाधर: ऊं जटाधराय नमः
कैलाशी: ऊं कैलाशवासिने नमः
कवची: ऊं कवचिने नमः
कठोर: ऊं कठोराय नमः
त्रिपुरान्तक: ऊं त्रिपुरान्तकाय नमः
वृषांक: ऊं वृषांकाय नमः
वृषभारूढ़: ऊं वृषभारूढाय नमः
भस्मोद्धूलितविग्रह: ऊं भस्मोद्धूलितविग्रहाय नमः
सामप्रिय: ऊं सामप्रियाय नमः
स्वरमयी: ऊं स्वरमयाय नमः।
त्रयीमूर्ति: ऊं त्रयीमूर्तये नमः।
अनीश्वर: ऊं अनीश्वराय नमः।
सर्वज्ञ: ऊं सर्वज्ञाय नमः।
परमात्मा: ऊं परमात्मने नमः।
सोमसूर्याग्निलोचन: ऊं सोमसूर्याग्निलोचनाय नमः।
हवि: ऊं हविषे नमः।
यज्ञमय: ऊं यज्ञमयाय नमः।
सोम: ऊं सोमाय नमः।
पंचवक्त्र: ऊं पंचवक्त्राय नमः।
सदाशिव: ऊं सदाशिवाय नमः।
विश्वेश्वर: ऊं विश्वेश्वराय नमः।
वीरभद्र: ऊं वीरभद्राय नमः।
गणनाथ: ऊं गणनाथाय नमः।
प्रजापति: ऊं प्रजापतये नमः।
हिरण्यरेता: ऊं हिरण्यरेतसे नमः।
दुर्धर्ष: ऊं दुर्धर्षाय नमः।
गिरीश: ऊं गिरीशाय नमः
अनघ: ऊं अनघाय नमः
भुजंगभूषण: ऊं भुजंगभूषणाय नमः
भर्ग: ऊं भर्गाय नमः
गिरिधन्वा: ऊं गिरिधन्वने नमः
गिरिप्रिय: ऊं गिरिप्रियाय नमः
कृत्तिवासा: ऊं कृत्तिवाससे नमः
पुराराति: ऊं पुरारातये नमः
भगवान्: ऊं भगवते नमः
प्रमथाधिप: ऊं प्रमथाधिपाय नमः
मृत्युंजय: ऊं मृत्युंजयाय नमः
सूक्ष्मतनु: ऊं सूक्ष्मतनवे नमः
जगद्व्यापी: ऊं जगद्व्यापिने नमः
जगद्गुरू: ऊं जगद्गुरुवे नमः
व्योमकेश: ऊं व्योमकेशाय नमः
महासेनजनक: ऊं महासेनजनकाय नमः
चारुविक्रम: ऊं चारुविक्रमाय नमः
भूतपति: ऊं भूतपतये नमः
स्थाणु: ऊं स्थाणवे नमः
अहिर्बुध्न्य: ऊं अहिर्बुध्न्याय नमः
दिगम्बर: ऊं दिगंबराय नमः
अष्टमूर्ति: ऊं अष्टमूर्तये नमः
अनेकात्मा: ऊं अनेकात्मने नमः
सात्विक: ऊं सात्विकाय नमः
शुद्धविग्रह: ऊं शुद्धविग्रहाय नमः
शाश्वत: ऊं शाश्वताय नमः
खण्डपरशु: ऊं खण्डपरशवे नमः
अज: ऊं अजाय नमः
पाशविमोचन: ऊं पाशविमोचकाय नमः
मृड: ऊं मृडाय नमः
देव: ऊं देवाय नमः
अव्यय: ऊं अव्ययाय नमः
हरि: ऊं हरये नमः
भगनेत्रभिद्: ऊं भगनेत्रभिदे नमः
अव्यक्त: ऊं अव्यक्ताय नमः
दक्षाध्वरहर: ऊं दक्षाध्वरहराय नमः
हर: ऊं हराय नमः
पूषदन्तभित्: ऊं पूषदन्तभिदे नमः
अव्यग्र: ऊं अव्यग्राय नमः
सहस्राक्ष: ऊं सहस्राक्षाय नमः
सहस्रपाद: ऊं सहस्रपदे नमः
अपवर्गप्रद: ऊं अपवर्गप्रदाय नमः
अनन्त: ऊं अनन्ताय नमः
तारक: ऊं तारकाय नमः
परमेश्वर: ऊं परमेश्वराय नमः

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