क्या मानव जाति का अंत होने वाला है, IPCC ने Global warming को बताया 'खतरे की घंटी'
संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि ग्लोबल वार्मिंग तेज हो रही है और इसके लिए साफ़ तौर पर मानव जाति ही ज़िम्मेदार है।
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पृथ्वी की औसत सतह का तापमान, साल 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा, ये बढ़ोतरी पूर्वानुमान से एक दशक पहले ही जाएगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते तापमान से दुनिया भर में मौसम से जुड़ी भयंकर आपदाएं आएंगी। दुनिया पहले ही, बर्फ की चादरों के पिघलने, समुद्र के बढ़ते स्तर और बढ़ते अम्लीकरण में अपरिवर्तनीय बदलाव झेल रही है।
पैनल का नेतृत्व कर रहीं वैलेरी मैसन-डेलोमोट ने कहा कि कुछ बदलाव सौ या हजारों वर्षों तक जारी रहेंगे, उन्हें केवल उत्सर्जन में कमी से ही धीमा किया जा सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वायुमंडल को गर्म करने वाली गैसों का उत्सर्जन जिस तरह से जारी है, उसकी वजह से सिर्फ दो दशकों में ही तापमान की सीमाएं टूट चुकी हैं।
इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्तांओं का मानना है कि मौजूदा हालात को देखते हुए इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस शताब्दी के अंत तक समुद्र का जलस्तर लगभग दो मीटर तक बढ़ सकता है।
लेकिन इसके साथ ही ये उम्मीद जुड़ी हुई है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में बड़ी कटौती करके बढ़ते तापमान को स्थिर किया जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटरेश का कहना है कि 'आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप की पहली रिपोर्ट मानवता के लिए ख़तरे का संकेत है'
संयुक्त राष्ट्र महासचिव का कहना है कि मिल-जुलकर जलवायु त्रासदी को टाला जा सकता है, लेकिन ये रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि इसमें देरी की गुंजाइश नहीं है और अब कोई बहाना बनाने से भी काम नहीं चलेगा।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने विभिन्न देशों के नेताओं और तमाम पक्षकारों से आगामी जलवायु सम्मेलन (COP26) को सफल बनाने की अपील की है।
कड़वी सच्चाई
इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने तैयार किया है जिसने 14,000 से अधिक वैज्ञानिक काग़ज़ात का अध्ययन किया है।
आने वाले दशकों में जलवायु परिवर्तन किस तरह से दुनिया को बदलेगा इस पर यह हाल की सबसे ताज़ा रिपोर्ट है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बहुत बड़ी ख़बर है, लेकिन यह 'उम्मीदों का एक छोटा-सा टुकड़ा है। '
क्यों महत्वपूर्ण है रिपोर्ट?
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारों के लिए उत्सर्जन कटौती को लेकर यह रिपोर्ट 'एक बड़े स्तर पर चेताने वाली' है।
जलवायु परिवर्तन के विज्ञान पर IPCC ने पिछली बार 2013 में अध्ययन किया था और वैज्ञानिकों का मानना है कि उन्होंने उसके बाद से बहुत कुछ सीखा है।
बीते सालों में दुनिया ने रिकॉर्ड तोड़ तापमान, जंगलों में आग लगना और विनाशकारी बाढ़ की घटना देखी है।
पैनल के कुछ दस्तावेज़ बताते हैं कि इंसानों के कारण हुए बदलावों ने असावधानीपूर्ण तरीक़े से पर्यावरण को ऐसा बना दिया है जो कि हज़ारों सालों में भी वापस बदला नहीं जा सकता है।
IPCC की इस रिपोर्ट का इस्तेमाल नवंबर में ब्रिटेन (ग्लासगो) में होने वाले संयुक्त राष्ट्र के COP26 (क्लाइमेट चेंज कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ द पार्टीज़) सम्मेलन में भी होगा।
संयुक्त राष्ट्र का COP26 सम्मेलन वो महत्वपूर्ण लम्हा हो सकता है अगर जलवायु परिवर्तन को नियंत्रण में लाने पर सहमति बन जाए। 196 देशों के नेता मिलकर एक बड़े लक्ष्य के लिए कोशिश करेंगे और किए जाने वाले उपायों पर अपनी सहमति देंगे।
सम्मेलन का नेतृत्व कर रहे ब्रिटेन के मंत्री आलोक शर्मा ने बीते सप्ताह कहा था कि दुनिया विनाश को बचाने के लिए लगभग सारा समय खो चुकी है और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव फ़िलहाल जारी हैं।
उन्होंने LBC से कहा, "यह रिपोर्ट बहुत सारी बुरी ख़बरों के साथ आएगी जो बताएगी कि हम कहां हैं और कहां जा रहे हैं, लेकिन यह उम्मीदों का एक दस्तावेज़ भी है जो मुझे लगता है कि जलवायु परिवर्तन पर बातचीत के लिए अच्छा है।
आशावादी बने रहने के लिए क्या कुछ कारण सकते हैं? इस पर वो कहते हैं कि 'अभी भी जलवायु परिवर्तन के बीच तापमान को डेढ़ डिग्री सेल्सियस बढ़ने से रोका जा सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव स्वरूप अगर धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो इसके बेहद गंभीर परिणाम हो सकते हैं। अब तक वैश्विक तापमान औद्योगीकरण पूर्व के स्तर से 1.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है।
2015 में हुए पेरिस जलवायु समझौते के तहत वैश्विक औसत तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देने का लक्ष्य रखा गया था और कहा गया था कि इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस पार नहीं होने दिया जाएगा।
रिपोर्ट से उम्मीदें
कई पर्यवेक्षकों के अनुसार, बीते कुछ सालों में विज्ञान में बहुत महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं।
IPCC की बैठकों में शामिल रहे WWF के डॉक्टर स्टीफ़न कॉर्निलियस कहते हैं, "हमारे मॉडल बेहतर हो गए हैं, हमें भौतिकी, रसायन और जीव विज्ञान की बेहतर समझ है, तो वे अब भविष्य के तापमान परिवर्तन का आकलन करने में सक्षम हैं और बीते कई सालों की तुलना में वे और बेहतर हुए हैं। "
"दूसरा परिवर्तन, बीते कुछ सालों में किसी विज्ञान का समर्थन करने वाले कारकों में वृद्धि हुई है. हम अब जलवायु परिवर्तन और बड़ी मौसमी घटनाओं के बीच में संबंध बता सकते हैं। "
2013 में प्रकाशित हुई IPCC की अंतिम रिपोर्ट में कहा गया था कि 1950 के बाद से जलवायु परिवर्तन की 'प्रमुख वजह' इंसान रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है तो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बेहद गंभीर हो सकते हैं।
ऐसी उम्मीद है कि इस बार IPCC यह भी बताएगा कि किस तरह इंसानों का प्रभाव समुद्र, वायुमंडल और हमारे ग्रह के अन्य पहलुओं पर पड़ रहा है।
एक और सबसे महत्वपूर्ण चिंता समुद्र का जल स्तर बढ़ने को लेकर है। IPCC के अपने पिछले अनुमानों के हिसाब से यह विवादित विषय रहा है क्योंकि इसको कई वैज्ञानिकों ने ख़ारिज कर दिया था।
बीते कुछ महीनों में जिस तेज़ी से जंगलों में आग लगने और बाढ़ के मामले बढ़े हैं, उसके लिए जलवायु परिवर्तन को वजह माना गया है। रिपोर्ट में उन अध्यायों को भी शामिल किया जाएगा जिसमें तापमान बढ़ने से मौसम के भयंकर रूप के मामले सामने आ रहे हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
पर्यावरण विश्लेषक रोजर हैराबिन कहते हैं कि इंटरगवर्नमेंटल पैनल दुनिया के विभिन्न देशों की सरकारों को साथ लाया है जिसने वैज्ञानिकों के शोध का मूल्यांकन किया है. इसका मतलब है कि सभी सरकारें इस शोध में शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि पिछले पैनल ने 2013 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी और शोधकर्ताओं का कहना था कि उसके बाद बहुत कुछ हुआ है।
जून में अमेरिका में भयंकर गर्मी पड़ी. अब वे इस बात को लेकर बेहद आश्वस्त होंगे कि यह जलवायु परिवर्तन के बिना हो ही नहीं सकता."
"वे कहते हैं कि दुनिया दिन ब दिन और गर्म होती जा रही है. ख़ासतौर से यह उत्तरी यूरीप में अधिक गर्म हो रही है. अगर मौसम चक्र बदलता है तो सूखा बढ़ेगा."
"पैनल के अध्ययन किए गए काग़ज़ात दिखाते हैं कि समुद्र का स्तर सैकड़ों या संभवतः हज़ारों सालों तक बढ़ना जारी रहेगा क्योंकि गर्मी गहरे समुद्र तक पहुंच चुकी है."
"शोध इस बात की पुष्टि भी करता है कि अगर राजनेता औद्योगीकरण पूर्व के समय के वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर पर रोकने में सक्षम हो गए तो भारी तबाही को रोका जा सकता है."
IPCC क्या है?
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है जिसे जलवायु परिवर्तन के विज्ञान का आकलन करने के लिए 1988 में स्थापित किया गया था।
IPCC सरकारों को वैश्विक तापमान बढ़ने को लेकर वैज्ञानिक जानकारियां मुहैया कराती है ताकि वे उसके हिसाब से अपनी नीतियां विकसित कर सकें।
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