चीन के 'कर्ज जाल' में फंसा यह खूबसूरत मुल्क, छोड़नी पड़ सकती है ज़मीन

 
चीन के 'कर्ज जाल' में फंसा यह खूबसूरत मुल्क, छोड़नी पड़ सकती है ज़मीन

मौजूदा दौर में कर्ज के तले अन्य मुल्कों को दबाना ही नया औपनिवेशवाद है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण बनकर चीन उभरकर सामने आ रहा है जिसके तर्ज कर्ज के तले दबे अब कई गरीब मुल्क झुकने लगे है. बतादें, श्रीलंका, मालदीव के बाद यूरोप का एक छोटा सा देश मोंटेनेग्रो चीनी ड्रैगन के कर्ज के शिंकजे में कसता नजर आ रहा है, जो कि करीब एक अरब डॉलर का कर्ज लौटाने में फ़िलहाल असमर्थ दिखाई दे रहा है.

Chinese Company की साजिश तो नहीं?

‘डेली मेल’ की रिपोर्ट के अनुसार चीन मोंटेनेग्रो द्वारा बेल्‍ट एंड रोड परियोजना के तहत भारी भरकम कर्ज को पूरा चुकाने के लिए पूरा दबाव डाल रहा है. यदि मोंटेनेग्रो यह कर्ज नहीं लौटा पाता है, तो वह दिवालिया हो जाएगा और चीन उसकी जमीन पर कब्‍जा कर सकता है.

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यहां गौर करने वाली बात यह है कि इस परियोजना को पूरा करने की जिम्मेदारी चीन की सरकारी कंपनी चाइना रोड एंड ब्रिज कॉर्पोरेशन पर है और वह चीन से बुलाए गए मजदूरों के जरिए पुल बना रही है. कंपनी 270 मील लंबे हाईवे के पहले सेक्‍शन (सर्बिया के बेलग्रेड) तक का काम भी पूरा नहीं पाई है. लिहाजा आशंका जताई जा रही है कि चीनी कंपनी जानबूझकर काम धीरे कर रही है, ताकि ड्रैगन को मोंटेनेग्रो पर दबाव बनाने का मौका मिल जाए.

जीडीपी से दोगुना कर्ज

मोंटेनेग्रो को इसी महीने एक अरब डॉलर की पहली किश्त चुकानी है लेकिन ये साफ नहीं है कि वह पैसा दे भी पाएगा या नहीं. वर्तमान में मोंटेनेग्रो पर उसकी जीडीपी से भी दोगुना कर्ज है (CPEC Loans to Countries). चीन के साथ हुए समझौते की शर्तों के अनुसार, अगर वह समयसीमा पर कर्ज नहीं लौटा पाता है तो चीन के पास उसकी जमीन पर कब्जा करने का अधिकार है. इसके अलावा मोंटेनेग्रो की पूर्व सरकार ने इस समझौते से जुड़े पूरे विवाद का निपटारा चीन की अदालत में किए जाने पर सहमति जताई है.

हालांकि मोंटेनेग्रो के उप प्रधानमंत्री अब्‍जोविक ने मई में कहा था कि समझौते की शर्ते बेतुका हैं. उन्‍होंने यूरो न्‍यूज से कहा, 'यह सामान्‍य नहीं है. यह देशहित के किसी भी लॉजिक के बाहर है.' चीन द्वारा बनाई जा रही इस सड़क को लेकर यूरोप में काफी बहस छिड़ी हुई है. कहा जा रहा है कि यूरोप में चीन का प्रभाव अब बढ़ता जा रहा है. दरअसल, चीन ने अपनी महत्‍वाकांक्षी बेल्‍ट एंड रोड परियोजना के जरिए एशिया और अफ्रीका के गरीब देशों को कर्ज का लालच दिया और उनके घटिया आधारभूत ढांचे को सुधारने का वादा किया.

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