Russia-Ukraine-Conflict: अमेरिका और जर्मनी को रूस की दो-टूक, Crude Oil पर दे दिया बड़ा बयान
Russia-Ukraine-Conflict : अमेरिका और यूरोप द्वारा लगाए जा रहे आर्थिक प्रतिबंधों से रूस अब बौखला गया हैं। रूस अब और ज़्यादा खतरनाक होता दिख रहा हैं। रूस के उप प्रधानमंत्री (Vice Prime Minister) ने यह साफ कर दिया हैं कि अगर उसके एनर्जी सप्लाई (Energy Supply) पर बैन लगाया गया।
Russia का जर्मनी को अल्टीमेटम
तो वह पश्चिमी देशों जिसमें यूरोप के कई देश शामिल हैं। उनको 300 डॉलर प्रति बैरल (Crude oil price) खरीदने के लिए मजबूर कर देगा। आपको बता दे की Russia and Ukraine दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल बेचने वाला देश हैं। रूसी उप प्रधानमंत्री ने रूस-जर्मनी के बीच चल रही गैस पाइपलाइन को भी बंद कर देने की धमकी दे डाली हैं।
अमेरिका और यूरोप क्यों लगा रहे हैं प्रतिबंध ?
अगर ऐसा होता हैं तो जर्मनी को गहरे आर्थिक संकट से गुजरना पड़ सकता हैं। दरअसल, अमेरिका, यूरोप और सहयोगी देश मिलकर रूस पर एनर्जी सप्लाई रोकने की तैयारी कर रहे हैं। इसकी वजह से ही सोमवार को कच्चे तेल का भाव 130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था। जो साल 2008 के बाद अपने उच्चतम स्तर हैं। ऐसे में भारत में भी पेट्रोल के रेट बढ़ सकते हैं।
उप प्रधानमंत्री ने दी चेतावनी
Russian Vice Prime Minister एलेग्जेंडर नोवक ने कहा कि अगर Russian Oil को खरीदने से मना किया जाता है तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। वो दिन दूर नहीं होगा जब कच्चे तेल का भाव 300 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाएगा। रूस कच्चे तेल को अभी डिस्काउंट पर बेच रहा है, लेकिन कोई भी देश रूस से तेल नही ख़रीद रहा हैं। इसका कारण हैं वह रूस का खुला समर्थक माना जाएगा।
Russia पर क्यों निर्भर हैं यूरोप ?
यूरोप को 40 प्रतिशत की गैस सप्लाई की पूर्ति रूस करता है। नोवक का कहना है की हम अपनी जिम्मेदारियों से कभी पीछे नहीं हटे हैं। अगर हमारे खिलाफ किसी भी तरह का एक्शन लिया जाता है, तो फिर इसका जवाब दिया जाएगा। यूक्रेन क्राइसिस के कारण जर्मनी ने पिछले महीने रूस को नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन को सर्टिफिकेशन देने से मना कर दिया था।
रूस रोजाना करीब 11 मिलियन बैरल तेल उत्पादन करता है। इसका आधा हिस्सा वह निर्यात करता है और निर्यात का आधा हिस्सा वह यूरोप को देता है। नोवक ने कहा कि अगर यूरोप रूस से तेल आयात बंद कर देता है। तो उसे भारी एनर्जी क्राइसिस से जूझना पड़ेगा। यूरोप के नेताओं को इस बात को समझने की जरूरत है और यूरोप की जनता से बात करने की ज़रूरत हैं।
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