चीन से 1962 की जंग में भारत का साथ देने अमरीका न आता तब क्या होता?
1962 मैं जब चीनी हिंद भाई भाई का नारा गूंज रहा था तब चीन भारत पर हमला कर दिया था। चीनी सेना संख्या भारत से दोगुनी थी और उनके पास भारत से आधुनिक हथियार भी थे। सबसे बढ़कर उनका नेतृत्व अनुभवी था साथ ही 10 साल पहले कोरिया में लड़ने का अच्छा अनुभव मिल चुका था।
जहां भारत की तरफ से 10-12 हजार सैनिक लड़ रहे थे वहीं चीन के 18 से 20 हज़ार सैनिकों का सामना कर रहे थे। इस युद्ध के बाद भारत का 32000 वर्ग मील इलाका चीन के नियंत्रण में आ गया था। इस युद्ध क्या अंजाम के रूप में न सिर्फ़ असम बल्कि बंगाल और यहाँ तक कि कलकत्ता पर ख़तरे के बादल मंडरा रहे थे।
उस वक्त भारत के राजदूत ने अमेरिका को चिट्ठी लिखा कि ''भारत को चीन के हमले से निपटने के लिए यातायात और युद्धक विमानों की ज़रूरत है।''
फिर अमरीकी वायुसेना के केसी 135 विमान को एंड्रीउज़ हवाई ठिकाने से रवाना किया गया और हैरिमैन और उनके साथ कैनेडी प्रशासन के दो दर्जन अधिकारी 18 घंटे की उड़ान के बाद 22 नवंबर की शाम 6 बजे दिल्ली पहुंचे। फिर 20 नवंबर की रात चीन ने एकतरफ़ा युद्ध विराम की घोषणा कर दी। यही नहीं चीन ने ये भी ऐलान किया कि उसकी सेनाएं 7 नवंबर, 1959 को वास्तविक नियंत्रण रेखा की जो स्थिति थी उससे 20 किलोमीटर पीछे चली जाएंगी।